30 साल बाद भाजपा मुक्त हुई गोरखपुर संसदीय सीट

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का किला हुआ ध्वस्त

सपा बसपा गठजोड़ ने चारों खाने चीत किया बीजेपी को

सपाइयों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला,12 राउंड की रुझान के बाद से एक दूसरे को गुलाल लगाना सुरु किया

गोरखपुर। गोरखपुर में सपा बसपा गठजोजोड के इंजीनियर प्रवीण निषाद ने अपने प्रतिद्वन्दी बीजेपी के उम्मीदवार उपेंद्र दत्त शुक्ल को लगभग 21961 वोट से पराजित कर जीत का परचम लहराया। 30 साल बाद भाजपा गोरखपुर संसदीय सीट बचाने के लिए जूझ रही थी। समाजवादी पार्टी गठबंधन सुरु से बढ़त बनाये हुए था। 17राउंड की गणना के बाद सपा उम्मीदवार इं. प्रवीण कुमार निषाद 26 हजार से अधिक वोटों से आगे चल रहे थे।
अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और एक उपचुनाव में भाजपा ने 07 बार, कांग्रेस ने 06 बार, निर्दलीय ने 03 बार, हिंदू महासभा ने 01 बार और भारतीय लोकदल ने 01 बार जीत दर्ज की है। सपा और बसपा इस सीट पर एक बार भी नहीं जींती थी। आपको बता दें कि 12 राउंड के बाद से ही सपाइयों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा था और मतगणना स्थल के बाहर हजारों की संख्या में सफाई कट्ठा हुए और एक दूसरे को गुलाल रंग फेंकना शुरु कर दिया ढोल-नगाड़ों की गूंज से पूरा सड़क गूंज उठा हालांकि बीच में DM द्वारा पत्रकारों को मतगणना स्थल से बाहर किए जाने पर गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक DM के प्रति सपाइयों में जबरदस्त गुस्से का इजहार शुरू हो गया था लेकिन बाद में इलेक्शन कमिशन के हस्तक्षेप के बाद कमिश्नर पत्रकारों के बीच पहुंचे और मतगणना स्थल तक जाने की छूट दे दी। सपाइयों को यह भय सता रहा था गोरखपुर जिला प्रशासन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दबाव में हो सकता है लास्ट में परिणाम को बदल दे।

1951-52 में गोरखपुर दक्षिण से सिंहासन सिंह कांग्रेस के सांसद चुने गए। यही सीट बाद में गोरखपुर लोकसभा सीट बनी। 1957 में गोरखपुर लोकसभा सीट से दो सांसद चुने गए। सिंहासन सिंह दूसरी बार सांसद बनें और दूसरी सीट कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने जीती। 1962 के लोकसभा चुनाव में गोरखनाथ मंदिर ने चुनाव में दस्तक दी। गोरक्षापीठ के महंत दिग्विजय नाथ हिंदू महासभा के टिकट पर मैदान में उतरे। उन्होंने कांग्रेस के सिंहासन सिंह को कड़ी टक्कर दी लेकिन 3,260 वोटों से हार गए। सिंहासन सिंह लगातार तीसरी बार सांसद बनें। 1967 में दिग्विजय नाथ निर्दलीय चुनाव लड़ें और कांग्रेस से जीत गए। 1969 में दिग्विजय नाथ का निधन हो गया जिसके बाद 1970 में उपचुनाव हुआ। दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी और गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और सांसद बने। 1971 में फिर से कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की। कांग्रेस के नरसिंह नरायण पांडेय चुनाव जीते। वहीं निर्दलीय अवैद्यनाथ चुनाव हार गए। 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के हरिकेश बहादुर चुनाव जीते। कांग्रेस के नरसिंह नरायण पांडेय चुनाव हार गए, वहीं अवैद्यनाथ लड़े ही नहीं। 1980 के चुनाव से पहले हरिकेश बहादुर कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और हरिकेश बहादुर कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने। 1984 के लोकसभा चुनाव से पहले हरिकेश लोकदल में चले गए। लेकिन इस बार पार्टी बदलने के बावजूद वे चुनाव नहीं जीत सके। कांग्रेस ने मदन पांडेय को चुनाव लड़ाया और मदन जीतकर सांसद बनें।1989 के चुनाव में राम मंदिर आंदोलन के दौरान गोरखनाथ मंदिर के मंहत अवैद्यनाथ फिर से चुनावी मैदान में उतर गए और हिंदू महसभा के टिकट पर अवैद्यनाथ दूसरी बार सांसद बने। 1991 की रामलहर में अवैद्यनाथ भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़े और फिर सांसद बने। 1996 में अवैद्यनाथ फिर भाजपा से लगातार तीसरी बार सांसद बने। 1998 में मंदिर के योगी और अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी युवा योगी आदित्यनाथ पहली बार सांसद बने। तब योगी सबसे कम उम्र के सासंद थें.1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार पांच बार योगी गोरखपुर से भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए। मार्च 2017 में यूपी के सीएम चुने जाने के बाद उन्होंने सांसद पद से त्याग पत्र दे दिया था।