एक सप्ताह पूर्व रंग बहादुर को अस्पताल के सफाई कर्मचारियों ने उसे अस्पताल से बाहर लाकर खुले आसमान के नीचे ज़मीन पर फेंक दिया।
अम्बेडकरनगर। आखिर क्यों नहीं सुधर रही है यूपी के स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की तस्वीर। मरीजों के स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार करोङो रूपये खर्च कर रही है। दवा, ईलाज से लेकर जाँच और फ्री भोजन की व्यवस्था के बावजूद आखिर ये कैसी संवेदनहीनता की भर्ती मरीज का ईलाज आधा-अधूरा कर उसे बाहर खुले आसमान के नीचे भूखा रहने के लिए आखिर क्यों छोड़ दिया जाता है। भाई की बेरुखी और अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता यह एक बड़ा सवाल है।
ये तस्वीरें है यूपी के अम्बेडकरनगर जिले की महात्मा ज्योतिबा फुले जिला संयुक्त चिकित्सालय की। ज़मीन पर अर्ध नग्न पड़े इस शख्स का नाम है रंग बहादुर सिंह जिसका अपना कोई नहीं है इस दुनिया में, है तो केवल एक भाई, जिसने अपने इस शारीरिक रूप से अक्षम भाई को लावारिश करार देकर बीते 12 जून 2018 को ईलाज के लिए जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करवाकर वहां से भाग निकला और फिर कभी वापस अपने बीमार भाई की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा।
लगभग एक महीने तक जिला अस्पताल में रंग बहादुर का ईलाज चला और फिर अस्पताल के कर्मचारियों के कहने पर एक सप्ताह पूर्व रंग बहादुर को अस्पताल के सफाई कर्मचारियों ने उसे अस्पताल से बाहर लाकर खुले आसमान के नीचे ज़मीन पर फेंक दिया। अस्पताल के डॉक्टर कर्मचारियों द्वारा रंग बहादुर का ईलाज भी पूरी तरह से नहीं किया गया था। एक सप्ताह से अस्पताल परिसर में पड़े इस निरीह मरीज की तरफ न तो अस्पताल प्रशासन ने मुड़कर देखा और न ही उसके सगे भाई ने। अस्पताल के बाहर पड़ा रंग बहादुर एक सप्ताह तक भूखा-प्यासा, खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर था लेकिन उसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं था।
मामला मीडिया तक पहुँच गया मीडियाकर्मी पहुँचे कैमरा चला और बात जिलाधिकारी तक पहुँची। जिलाधिकारी की फटकार के बाद अस्पताल प्रशासन ने आनन्-फानन में रंग बहादुर को पुनः ईलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कर लिया जहाँ पर अब उसका उपचार चल रहा है। जिलाधिकारी ने बताया कि व्यक्ति की गरिमा को सुरक्षित रखते हुए उसका ईलाज करावे, उसे भोजन पानी दे जब तक उसके परिवार वाले उसको नहीं ले जाते उपचार करने के बाद उसका नाम पता ज्ञात कराकर उसे सुरखित हांथो में पहुँचाया जाय जिससे वो सम्मान की ज़िन्दगी जी सके। अस्पताल सरकारी संस्था में किसी साथ ये अमानवीय व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
एक तरफ भाई की बेरुखी और दूसरी तरफ धरती के भगवान् कहे जाने वाले डॉक्टरों की उपेक्षा से रंग बहादुर जिस तरह से मुफ़्लिसी का शिकार हुआ है। उससे साफ़ कि सरकारी अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाएं मरीजों के लिए कितनी बेहतर है। आखिर कब सुधरेंगी डॉक्टरों और कर्मचारियों की मनमानी यह एक यक्ष प्रश्न है ? सरकार के लिए…।