पैगंबर-ए-इस्लाम की शिक्षाओं के प्रचारक हैं औलिया

हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां के उर्स-ए-पाक का पहला दिन

गोरखपुर। नार्मल स्थित दरगाह पर हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का सालाना तीन दिवसीय उर्स-ए-पाक बुधवार को ‘जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी व ‘जलसा-ए-दस्तारबंदी’ के साथ शुरू हुअा।

मुख्य अतिथि फैजाबाद के पीरे तरीकत अल्लामा सैयद अब्दुर्रब उर्फ चांद बाबू ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं के सही प्रचारक औलिया हैं, शांति की शिक्षा उनके जीवन का मकसद होती है, सृष्टि को निर्माता से मिलाना और मनुष्य को मानवता के बारे में पता कराना उनका विशेष कार्य होता है। औलिया का दरवाजा हर आने वाले  के लिए खुला रहता है। उनकी शिक्षाओं का पालन करने से ही आज की दुनिया को शांति प्रदान हो  सकती है, आज के दौर में उनकी शिक्षा की अधिक महत्व और जरूरत बढ़ गई है, क्योंकि आज हर मजहब दूसरे मजहब का और हर इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन बना हुआ है, जो हत्या करता है वह भी मजहब का मानने वाला और अपने मालिक का नाम लेने वाला होता है और जिस की हत्या होती है वह भी मजहब का दावेदार और अल्लाह को पुकारने वाला होता है, ऐसे में औलिया की शिक्षा का महत्व और भी बढ़ जाता है, उनकी सोहबत में पहले मनुष्य को मानवता की शिक्षा दी जाती है और फिर मनुष्य को उसके मालिक से मिला दिया जाता है, जो अपने मालिक से प्रसन्न होता है और मालिक उस से प्रसन्न होता है तो ऐसा व्यक्ति सारी दुनिया के लिए साया बन जाता है और उसके दया के साये में दोस्त और दुश्मन सब बराबर के भागीदार और हिस्सेदार होते हैं। उन्होंने आवाम से अपील किया कि अहकामे शरीयत का पालन करिए। शरीयत से हट कर कोई काम न कीजिए।

विशिष्ट अतिथि मेंहदावल के मुफ्ती अलाउद्दीन मिस्बाही ने कहा कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आखिर पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम तक जितने भी पैगंबर इस दुनिया में आये, वह सब इंसानों को एकता और इंसानियत की दावत देने के लिए आए। आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम इंसानियत के लिए  रहमत बनकर आए। आप (सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम) ने इंसानों को उस के हकीकी मालिक से मिलाया। पैगम्बर-ए-इस्लाम पर नाज़िल होने वाली किताब कुरआन-ए-पाक भी एक विशेष क़ौम व मिल्लत के लिए नहीं बल्कि उसमें सभी इंसानों के लिए अल्लाह का संदेश है व हिदायत हैं। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने अपने अंतिम धर्मोपदेश (खुत्बा–ए-हज्जतुल विदा) में स्पष्ट शब्दों में फ़रमाया है कि कोई इंसान किसी दूसरे इंसान पर कोई श्रेष्ठता नहीं रखता, किसी गोरे को काले, किसी अरबी का अजमी पर कोई बड़ाई नहीं है, लेकिन केवल अपनी अच्छाईयों, अल्लाह का खौफ, इंसानों में जिसका रिश्ता अल्लाह से मजबूत होगा और बंदों को जिससे अधिक लाभ होगा, वह ही बेहतर इंसान है।

इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि मुसलमान वह है जिस के हाथ और ज़बान से सभी इंसानों को सलामती पहुंचे। सही मुसलमान वो है जो दुनिया को शांति से भर दे, जो ज़ुल्म  करे उस पर रहम करे, जो रिश्ता तोड़े उस से रिश्ता जोड़े मगर अफसोस कि आज हम मुसलमान होने का दावा करते हैं लेकिन हमारा पड़ोसी भी हम से खुश नहीं होता। देशवासियों को कुरआन शरीफ को पढ़ने की दावत देते हुए कहा कि इस्लाम व कुरआन के अध्ययन से, पैगंबर-ए-इस्लाम के अख्लाक और उनके सच्चे वारिस औलिया, उलेमा के जीवन को समझें। अगर पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम के दिए हुए नियमों का पालन हो तो भारत भ्रष्टाचार, औरतों की असुरक्षा, भुखमरी और इस प्रकार के रोगों से और सभी तरह की नास्तिकता से और मजहब के नाम पर हिंसा से सुरक्षित हो सकता है।

कोलकाता के कारी सखावत हुसैन बरकाती ने कहा कि दरगाहों का मिशन लोगों को जोड़ना, मुहब्बत करना व मुल्क की तरक्की व खुशहाली की कामना करना है। बड़े-बड़े बुजुर्गों ने लोगों से मुहब्बत और वतनपरस्ती का दर्स दिया है। कुरआन व हदीस में भी वतन से मुहब्बत का तजकिरा है। उन्होंने कहा कि यह औलिया-ए-किराम अम्बिया अलैहिस्सलाम के सच्चे जानशीन हैं। इस्लाम व ईमान की रोशनी इन्हीं के जरिए से हम तक पहुंची है। शरीयत की पाबंदी करिए। उन्होंने नसीहत किया कि अहकाम-ए-शरीयत का पालन कीजिए, जिंदगी संवर जायेगी।

देवरिया के कारी अजहरूल कादरी ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम के अंतिम हज का उपदेश इस्लाम के व्यक्तिगत और सामूहिक नैतिकता और इस्लामी शरीयत के नियम का एक व्यापक संविधान है। आज से चौदह सौ साल पहले दयालुता के प्रतीक पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम ने मानव अधिकार का ह्यूमन चार्टर लागू किया था। इस भाषण में आपने मूल रूप में जिन विषयों पर चर्चा की वह हैं, रंग और वंश तथा जातिवाद का खंडन, जान, और माल का सम्मान, अज्ञानता काल के रीति रिवाजों को खत्म करना, अमानत की अदायगी, शैतान के बहकावे से चेतावनी, महिलाओं के साथ सद्व्यवहार, और क़ुरआन और सुन्नत को थामे रहने का आदेश हैं। इसे अपने जीवन में रचाना बसाना सभी मुसलमानों की नैतिक जिम्मेदारी हैं। तभी इंसानो का हित होगा।

नात-ए-पाक सादिक रजा नेपाली, रौशन वैशालवी, रईस अनवर व एजाज अहमद ने पेश की। इस दौरान कारी शराफत हुसैन कादरी, हाफिज नजरे आलम कादरी, मौलाना मकसूद आलम, अब्दुल कादीर, नूर मोहम्मद दानिश, इकरार अहमद, मारूफ, हाफिज रहमत अली, शादाब रजा, मौलाना नूरुज्जमा मिस्बाही, मो. अतहर, कारी अफजल बरकाती, मनौव्वर अहमद, रमजान अली, हाजी सेराज अहमद, फिरोज अहमद नेहाली सहित तमाम लोग मौजूद रहें।

हिफ्ज के आठ छात्रों की हुई दस्तारबंदी

‘जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी’ के बाद मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजान-ए-मुबारक खां शहीद के आठ हिफ्ज के विद्यार्थियों मो. शहाबुद्दीन, मो. आतिफ रजा, मो. मेराज, मो. शाकिब रजा, मो. आमिर रजा, रिजवान आलम, मो. सैफ रजा, नूर आलम की दस्तारबंदी (सनद देने की रस्म) मुख्य अतिथियों द्वारा अदा की गयी। छात्रों के सरों पर दस्तार बांधी गयी। लोगों ने नजरानों से नवाजा।

मजार की हुई संदल पोशी

नार्मल स्थित हजरत बाबा मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां के सालाना उर्स-ए-पाक में मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य धर्मो के लोगों ने शिरकत कर अमन चैन व खुशहाली की दुआएं मांगी। भोर में गुस्ल एवं संदल पोशी हुई।