गाजी मियां की वास्तविक दरगाह बहराइच में हैं
गोरखपुर। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हजरत सैयद सालार मसऊद गाजी मियां रहमतुल्लाह अलैह (बाले मियां) के लगन की रस्म प्रातःकाल से बहरामपुर स्थित प्रतीकात्मक दरगाह (गाजी मियां की वास्तविक दरगाह बहराइच में हैं) पर पारम्परिक तरीके से शुरू हुई। इस मौके पर दरगाह पर गुस्ल, परंपरागत चादर पोशी, संदल पोशी हुई। इसके बाद कुरआन खानी की गयी। अकीदतमंदों द्वारा इस अवसर पर दरगाह में चादर-गागर चढ़ाया गया।
बतातें चले कि हर साल लग्न की रस्म पंग पीढ़ी के रूप में मनायी जाती है। बहरामपुर में हर साल जेठ के महीने में यहां मेला लगता हैं जहां पर आस-पास के क्षेत्रों के अलावा दूर दराज से भारी संख्या में अकीदतमंद यहां आते है। जगह-जगह जायरीनों के लिए स्टाल लगाए गए है। एक माह तक चलने वाले मेले के मुख्य दिन रविवार को अकीदतमंदों द्वारा लहबर व कनूरी भी चढ़ाई जा रही है। पलंग पीढ़ी देर रात उठेगी। जिसमें अकीदतमंद नाचते गाते दरगाह पर पहुंचेंगे और लगन की रस्म पूर्ण करेंगे। जिन लोगों की मन्नत पूरी हो गयी उन्होंनें मन्नत उतारी। अकीदतमंदों ने चने की दाल, अखियां, मुर्गा ,चावल आदि पका कर फातिहा दिलायी। दरगाह पर लोगों की लम्बी लाइन सुबह से ही लग गयी। देर रात तक लोग दरगाह पर जाकर लोग मन्नतें मांगते रहेंगे। दरगाह पर देश में शांति खुशहाली की दुआ भी मांगी जा रही है।
मेले में जायरीन खाने, पीने, घरेलू सामनों, खिलौनों आदि की दुकानों के साथ ही छोटे-बड़े झूले, जादू, लजीज व्यंजन का जमकर मजा ले रहे हैं। महिलाएं सौन्दर्य प्रसाधन व गृहस्थी का सामना खरीदने में मश्गूल नजर आ रही है। वहीं पुरूष भी अपनी जरूरत का सामान खरीदते नजर आए। चारों तरफ कव्वालियों की मधूर धुनें लोगों को सूफी मिजाज में रंग रही है। जात-पात, मजहब के सारे बंधन टूटते नजर आ रहे है। सभी की ख्वाहिश है पहले जियारत फिर मनोरंजन। आने वाले रविवार पर भी खास रौनक बनी रहेगी। मेले में बड़ी संख्या में लोगों ने सहभामिगता हो रही है।
लग्न की रस्म इसलिए मनायी जाती है
प्रमाणित साक्ष्यों के मुताबिक जब गाजी मियां की शोहरत दूर-दूर तक पहुंची तो उस जमाने में रूधौली जिला बाराबंकी की रहने वाली बीबी साहिबा जोहरा जो सैयद जादी थी और पैदाइशी अंधी थी। उस वक्त आप की उम्र बारह साल की थी एक दिन आपके वालिद सैयद जमालुद्दीन ने घर में सैयद गाजी मियां की करामातों का जिक्र किया। बोले जो हाजतमंद बहराइच जाता हैं खुदा के फज्ल से गाजी मियां के वसीले से दिली मुराद पा जाता है।
उन्होंने दुआ की ऐ वली को शहीद को दर्जा अता करने वाले अल्लाह, गाजी मियां के सदकें मेरी लड़की को आंख वाला कर दें। रौजे पर हाजिरी दूंगा। इधर जोहरा बीबी ने अहद किया कि अगर मैं आंख पा जाऊंगी तो दरगाह शरीफ पर हाजिरी दूंगी। आप मोहब्बत-ए-गाजी मियां में ऐसी गुम हुई की दिन रात गाजी मियां का नाम जुबान से जारी रहता। जब मोहब्बत इश्क की मंजिल को पा लिया तो एक रात ख्वाब में देखा दरवाजे पर कोई घुड़सवार आया है। पानी मांगा जोहरा बीबी पानी लेकर दरवाजे पर पहुंची और गिलास सवार की तरफ बढ़ाती है। आवाज आयी मेरी तरफ देखो।
बस उसी वक्त आखें रौशन हो गयी। बहराइच जाने की बात करती है। यहां पर मजार की चौहद्दी तामीर करती है। जब यहां आती है तो फिर यहीं की होकर रह जाती है। यहीं पर रह कर आपका इंतेकाल 19 साल की उम्र में हुआ। यहीं पर आपका मजार हैं। जेठ माह में जोहरा बीबी साहिबा का इंतेकाल हो गया और साल गुजरते रहे और फिर एक दिन ऐसा आया कि इस दिन को लोगों ने लगन के नाम से मंसूब कर दिया।