इस्लाम के पैगाम पर अमल करते हुए कामयाब इंसान बनेें : मुफ्ती अजहर

इस्लाम के पौधे को भारत में औलिया-ए-किराम ने अपने अच्छे किरदार और समाज में मोहब्बत का पैगाम देकर हरा-भरा किया है। मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी 

गोरखपुर। तहरीक दावत-ए-इस्लामी हिंद की जानिब से मंगलवार को नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां पर रात्रि नमाज के बाद जलसा आयोजित हुआ।

जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इस्लाम के पौधे को भारत में औलिया-ए-किराम ने अपने अच्छे किरदार और समाज में मोहब्बत का पैगाम देकर हरा-भरा किया है। औलिया-ए-किराम किसी दुनियावी जमात का नाम नहीं, बल्कि औलिया वह लोग हैं, जो दुनिया की मोहमाया से अलग रहकर हर काम को अल्लाह के लिए करते है। लोगों को इनकी जिंदगी से सबक लेना चाहिए। इस्लाम में तालीम हासिल करने को कर्तव्य करार दिया गया है जिससे साफ पता चलता है कि इस्लाम तालीम पर ज्यादा ध्यान देता है। जाहिल और पढ़े लिखे लोगों में फर्क जिंदा और मुर्दा के समान है। इस्लाम में तालीम हासिल करना और दूसरों तक पहुंचाना जरुरी है।

दरगाहों पर जब भी हाजिरी देनी हो तो मजार से चार कदम के फासले पर बाअदब खड़े होकर फातिहा पढ़ी जाए और बुजुर्ग के वसीले से अल्लाह की बारगाह में दुआ की जाए।

उन्होंने कहा कि उर्स के दौरान शोर शराबा से बचा जाएं व औलिया की तालीमात पर अमल करने का अहद लिया जाए। मजारों के बारे में चंद हिदायते देते हुए कहा कि मजारों पर सज्दा करना नाजायज व हराम है। मजारों पर इबादत की नियत से सज्दा करना कुफ्र है। मजारों का तवाफ (चक्कर) करना भी शरीयत में मना किया गया है। मजार को बोसा (चूमने) लेने से बचा जाए। मजार पर एक चादर जब पुरानी हो जाए तभी बदली जाएं। मजार पर चादर चढ़ाने के बजाए उस पैसे से गरीबों फकीरों की मदद की जाएं। दरगाहों पर जब भी हाजिरी देनी हो तो मजार से चार कदम के फासले पर बाअदब खड़े होकर फातिहा पढ़ी जाए और बुजुर्ग के वसीले से अल्लाह की बारगाह में दुआ की जाए। दरगाहों पर मन्नत का धागा बांधना भी बेफिजूल है। दरगाहों के जिम्मेदारान का यह कर्तव्य है कि वह सामाजिक कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेकर सामाजिक समरसता व प्रेम का माहौल कायम करें।


उन्होंने कहा कि इस्लाम में हराम माल से मना किया गया है, लिहाजा इससे सख्ती के साथ बचा जाए। इस्लाम ने अमानतदारी, वादा पूरा करना, झूठ से बचना, दूसरें के हुकूक का ख्याल, मां बाप की खिदमत, उस्ताद की फरमाबरदारी का पैगाम दिया है। इस्लाम के पैगाम पर अमल करते हुये कामयाब इंसान बनेें। यकीन जानिए कामयाबी आपके कदम चमूेगी। नमाज, रोजा, हज, जकात वक्तों पर अदा कीजिए। आला हजरत इमाम अहमद रजा खां अलैहिर्रहमां का मसलक हक जमात की निशानी है इससे वाबस्ता (जुड़ जाना) रहिए।


विशिष्ट वक्ता वसीउल्लाह अत्तारी ने कहा कि मजहब-ए-इस्लाम को इंसान ने बड़ी तेजी के साथ कुबूल किया हैं। आज इस्लाम दुनिया का सबसे ज्यादा मकबूल मजहब बन गया है और किसी एक तबके, नस्ल या गिरोह, इलाकें का नहीं बल्कि सारी दुनिया में हर नस्ल, हर इलाके, हर तबके के लोग इस्लाम से वाबस्ता (जुड़ जाना) हो गए। उन्होंने कहा कि आज अगर अहले इस्लाम, इस्लाम के उसूल व कानून की पाबंदी करके सही मायने में मुसलमान बन जायें तो दुनिया में जो लोग अभी इस्लाम की लज्जत से नावाकिफ हैं वह सब इस्लाम के दामन से वाबस्ता हो जायेंगे। नेक बने एक बने। तालीम हासिल करें। शरीयत की पाबंदी करें।


नात शरीफ आदिल अत्तारी व नफीस अत्तारी ने पेश की। इस मौके मो. नदीम कादरी, मो. फरहान अत्तारी, अख्तर निजामी, अलाउद्दीन अत्तारी, वजीहुद्दीन अत्तारी, कमालुद्दीन अत्तारी, सुहेल, नौशाद, फैजान, महताब, अहमद,  मुनव्वर अहमद, हाजी सेराज अहमद, रमजान अत्तारी सहित तमाम अकीदतमंद मौजूद रहे।