बेटे को हर दो माह में तीन बार चढ़ाया जाता खून, हर बार खर्च होता ढ़ाई से तीन हजार
गोरखपुर। जमुनहिया बाग गोरखनाथ का रहने वाला तीन साल दो माह का मोहम्मद हसन मेजर थैलेसीमिया (जानलेवा) बीमारी से पीड़ित है। दो माह में तीन बार उसे खून चढ़ाया जाता है। इस बार उसे खून की बेहद जरुरत थी लेकिन कोई मिल नहीं रहा था। पिता आसिफ महमूद खान बहुत परेशान थे। इसी बीच मो. हसन के लिए डा. कफील अहमद खान के छोटे भाई कासिफ जमील अहमद व रसूलपुर के तारिक आशा की किरण बनकर आए। मो. हसन के पिता द्वारा सोशल मीडिया पर डाला गया मैसेज बहुत काम का साबित हुआ और कासिफ व तारिक ने गोरखनाथ चिकित्सालय पहुंचकर खून दान दिया।
दोनों के खून दान किए दो पाउच खून से मो. हसन को दो बार खून मिल जाएगा। हसन को एक पाउच खून शुक्रवार को अहमद हास्पिटल में चढ़ाया जायेगा। दूसरा बचा खून सेफ रख लिया जाएगा। जिसे पन्द्रह दिन बाद मुकद्दस रमजान माह में चढ़ाया जायेगा।
काबिलेगौर कि आसिफ महमूद के बेटे की हालत गुरुवार से खराब थी। मोहल्ले वालों व रिश्तेदारों से कई बार खून ले चुके थे। इस बार कोई खून देने वाला मिल नहीं रहा था। तो मजबूरन उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया। यह मैसेज जब डा. कफील अहमद खान के भाई कासिफ जमील अहमद व तारिक ने पढ़ा तो वह खून देने गोरखनाथ चिकित्सालय पहुंच गए। जिस तरह बीआरडी मेडिकल कालेज में डा. कफील ने बच्चों की जान बचाने का प्रयास किया था ठीक उसी जज्बे से कासिफ व तारिक ने भी प्रयास किया।
जब हमारे सवाददाता ने आसिफ महमूद खान से बच्चे के रोग के सबंध में बात की तो रोंगटे खड़े हो गए। बच्चे को पैदाइश के पांचवें माह में मेजर थैलेसीमिया जैसी जानलेवा बीमारी ने चपेट में ले लिया। यह बीमारी अनुवांशिक है। डॉ. बताते है कि 25 लाख में किसी एक को यह बीमारी होती है। इस बीमारी में खून बनना बंद हो जाता है। आसिफ ने बताया कि मो. हसन को अभी तक छोटा-बड़ा मिलाकर 50 पाउच खून चढ़ाया जा चुका है। उन्होंने बताया कि हर बार खून के लिए रक्तदाता की जरुरत पड़ती है। पास-पड़ोस, रिश्तेदारों से कई बार खून ले चुके है। गोरखनाथ चिकित्सालय वालों ने भी कई बार मदद की है। आज बच्चे की तबियत बिगड़ी थी। तो खून की जरुरत पड़ गयी। रमजान भी करीब है। रमजान में खून मिलना और भी मुश्किल था। इसलिए बेचैनी थी लेकिन कासिफ व तारिक ने वह बेचैनी काफी हद तक कम कर दी। उन्होंने बताया कि इस बीमारी का गोरखपुर में इलाज नहीं है। पीजीआई लखनऊ ने फाइनली बोनमैरो ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी है। जिसका खर्चा करीब 15 लाख रुपया है। जिसका इंतजाम करना फिलहाल मुश्किल है।
मदरसा टीचर आसिफ का दो साल का मानदेय है बकाया
उन्होंने बताया कि वह 2010 से ‘एम फातिमा निस्वां उर्दू स्कूल’ में केंद्र सरकार की मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत शिक्षक है। दो साल से केंद्र सरकार ने मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों का मानदेय नहीं भेजा है। एक साल का मानदेय लैप्स भी हो चुका है। ऐसे में बच्चे का इलाज कराने में काफी दुश्वारी हो रही है। बच्चे को दो माह में तीन बार खून चढ़ता है। हर बार 2, 500 से 3,000 रुपया खर्च होता है। प्रदेश सरकार द्वारा मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों को दिया जाने वाला अंशदान (3000 प्रति माह) मार्च 2018 तक का मिल चुका है लेकिन केंद्र सरकार का मानदेय अभी तक बकाया है। मानदेय कई साल बीत जाने के बाद कभी तीन माह का तो कभी छह माह का आता है। आखिरी बार मानदेय कई साल पहले का बकाया दिसंबर 2017 में मिला था। ऐसे में इलाज व घर का खर्चा चलाना मुश्किल होता है। ऐसे में बेटे की बीमारी पर काफी खर्च होता है। आसिफ का एक बेटा मो. हस्सान भी है जो सात साल का है और कक्षा 4 में पढ़ता है। मो. हसन कक्षा 1 में पढ़ता है। आसिफ घर के खर्च के लिए कोचिंग व ट्यूशन भी पढ़ाते है।
एक बात तो तय है मदरसा आधुनिकीकरण योजना जिस पर मदरसों में आधुनिक शिक्षा का दारोमदार है उसके तहत तैनात शिक्षक जिंदगी से जद्दोजहद कर रहे है। आसिफ तो एक बानगी है ऐसे कई आसिफ व हसन मिलेंगे जो इस योजना के तहत जिंदगी से जूझ रहे है। सरकार का जुमला “सबका साथ सबका विकास” मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों पर फिलहाल सही नहीं बैठता।