“फतह मक्का” एक शानदार फतह थीं, जो रमजानुल मुबारक की 20 तारीख को हुई, पैगम्बर-ए-इस्लाम ने इस फतह से लोगों का दिल जीत लिया और सभी को आम माफी दी गयी
गोरखपुर। शहर की कई मस्जिदों में माह-ए-रमज़ान का विशेष दर्स चल रहा है। उसी कड़ी में बुधवार को शहर की छह मस्जिदों में ‘यौम-ए-फतह मक्का’ मनाया गया।

नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में मुफ्ती मो. अजहर शम्सी व मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि ‘फतह मक्का’ एक शानदार फतह थीं। जो रमजानुल मुबारक की 20 तारीख को हुई। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने इस फतह से लोगों का दिल जीत लिया। सभी को आम माफी दी गयी। तारीख में इससे अनोखा वाकया कहीं नहीं मिलता। उन्होंने फतह मक्का के हर पहलू पर विस्तार से रोशनी डाली।
गौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद ने कहा कि ‘फतह मक्का’ के बाद पैगम्बर-ए-इस्लाम ने सबको आम माफी दे दीं। खून का एक कतरा भी नहीं गिरा और फतह अजीम हासिल हो गई। तारीख ने ऐसी फतह आज तक नहीं देखीं। मक्का को दारुल अमन यानी “शांति का घर” घोषित किया गया और यह सब उस पैगम्बर-ए-इस्लाम के हाथों किया गया जिन्हें पूरे संसार के लिये रहमत बनाकर भेजा गया है।
मस्जिदे मदद अली (एक मीनारा) बेनीगंज में कारी शाबान बरकाती ने कहा कि ‘फतह मक्का’ विश्व इतिहास की बड़ी ही अद्भुत घटना है। पैगम्बर-ए-इस्लाम के सामने वह सारे लोग थे, जिन्होंने उन्हे सताया था, गालियां दी थीं। वह लोग भी थे जो आपसे लड़ने पर उतारु थे, आपकी जान के दुश्मन थे। वह लोग भी थे जिन्होंने आपके चचा को क़त्ल करके उनके कलेजे को चबाने का वहशियाना काम को अंजाम दिया था। लेकिन दुनिया ने देखा कि आपने सबको माफ कर एक अनोखीं मिसाल पेश की। पैगम्बर-ए-इस्लाम के इस फैसले से लोग इस्लाम के दामन से जुड़ते चले गए।

मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर में कारी अफजल बरकाती ने कहा कि मक्का की फतह अरब से मुशरिकीन के मुकम्मल खात्में की शुरुआत साबित हुई। मक्का की फतह के बाद पैगम्बर-ए-इस्लाम ने वहां के लोगों से शिर्क न करने, जिना न करने, चोरी न करने की शर्त पर बैअत ली और उन्हें अपने-अपने बुतों को तोड़ने का हुक्म दिया। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने किसी पर जुल्म नहीं किया। सबको अमान दे दिया।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना असलम रजवी ने कहा कि दुनिया ने ऐसा नज़ारा कभी न देखा था, कि इस्लाम के सारे दुश्मन, पैगम्बर-ए-इस्लाम के सामने थे। पैगम्बर-ए-इस्लाम चाहते तो सबसे बदला ले लेते। मगर ‘फतह मक्का’ में जो हुआ शायद ही किसी फौज के मुखिया ने यह फैसला लिया हो। दुनिया ने इतने जनरल को देखा है, क्या कभी ऐसा हुआ है कि सभी युद्धबंदियों को माफ कर दिया गया हो? कभी नहीं हुआ, जबकि यहां के युद्धबंदी वह लोग थे जो लोगों के दिलों पर राज करने वाले पैगम्बर-ए-इस्लाम को मारने के लिये तरह-तरह की साज़िशें कर रहे थे। सबको एक झटके में माफ कर दिया गया। किसी से कोई बदला नही लिया गया।
नूरी जामा मस्जिद अहमदनगर चक्शा हुसैन में मौलाना शादाब रजवी ने ‘फतह मक्का’ का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक ऐसी जंग थी की जिसमें कोई मारा नहीं गया। बल्कि सही मायने में सबको बेहतरीन जिंदगी मिलीं।