उर्स-ए-पाक मनाया गया
गोरखपुर। हजरत सैयद सालार मसूद गाज़ी मियां अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक सोमवार को नार्मल स्थित दरगाह मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां पर अदबो ऐहतराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर हाफिज मो. आतिफ रजा ने गाज़ी मियां की हयात व खिदमात पर रौशनी डालते हुए कहा कि गाजी मियां मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली की बारहवीं पुश्त से है। गाजी मियां के वालिद का नाम गाजी सैयद साहू सालार था। मां का नाम सितर-ए-मोअल्ला था। चार साल चार माह की उम्र में आपकी बिस्मिल्लाह ख्वानी हुई। नौ साल की उम्र तक फिक्ह व तसव्वुफ की शिक्षा हासिल की। आप बहुत बड़े आलिम थे।
हाफिज अज़ीम अहमद ने कहा कि गाज़ी मियां बहुत मिलनसार थे। हर एक से कलमातें तौहीद व सुलूक तौहीद फरमाते थे। जिसकी वजह से सब को मुहब्बत इलाही का शौक होता था। जब तंहाई में होते तो वुजू करते और इबादत-ए-इलाही में मश्गूल हो जाते।
हाफिज अब्दुर्रज्जाक ने कहा कि गाज़ी मियां ऐसे सूफीयों की संगत में अपना जीवन व्यतीत करते थे, जिनका संसार के लौकिक विधा की अपेक्षा अलौकिक विधा पर अधिक अधिकार था। इसके अतिरिक्त आप युद्ध कला विशेषकर तीरंदाजी में भी पूर्ण अधिकार रखते थे।
दरगाह मस्जिद के इमाम मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि गाज़ी मियां मानवता का संदेश देने के लिए बहराइच आए। उस समय वहां ऊंच-नीच, जाति-पात का बोल बाला था। आपने इन रिवाजों का विरोध किया। बहराइच के राजाओं ने आपसे बहराइच खाली करने को कहा। गाजी मियां ने कहा कि मैं यहां पर हुकूमत करने नहीं आया हूं। उसके बावजूद राजा नहीं माने। राजाओं ने मिलकर हमला कर दिया। आपने बहादुरी से मुकाबला करते हुए शहादत का जाम पिया। अस्र मगरिब के दरमियान इस्लामी तारीख 14 रज़ब 423 हिजरी में (बहुत ही कम उम्र में) आपकी रूह मुबारक ने इस जिस्म खाक को छोड़ कर अब़्दी जिदंगी हासिल की। आप हमेशा इंसानों को एक नजर से देखते थे। सभी से भलाई करते। दुनिया से जाने के बाद भी आपका फैज जारी है। आपका मजार शरीफ बहराइच शरीफ में है। जहां पर मजहब, ऊंच-नीच, जात-पात की दीवार गिर जाती है।
तिलावत-ए-कलाम पाक से उर्स का आगाज हाफिज महबूब रजा ने किया। नात शरीफ पढ़ी गई। अंत में कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। मुल्कों मिल्लत के वास्ते दुआ-ए-खैर की गयी। इस दौरान सदरे आलम, नसीम, सैयद कबीर अहमद, जमशेद अहमद, नबी हुसैन, सेराज अहमद, जुल्फेकार अली, हाजी कमरुद्दीन, हाफिज शहादत हुसैन, हाफिज अब्दुल अजीज, सैफ अली, मो. रजा, हाफिज अबु तलहा, हाफिज शाकिब रजा आदि मौजूद रहे।