ख्वाब में आज नज़र आया है मुझको काबा : मिर्ज़ा अली

जश्न-ए-मौलूद-ए-काबा का हुआ आयोजन

गोरखपुर। मेरे मौला मुझे अब तेरी जियारत होगी, ख्वाब में आज नजर आया है मुझको काबा। मिर्जा अली के इसी शेर से गीता प्रेस रोड स्थित इमामबाड़ा आगा साहेबान में रविवार को जश्न-ए-मौलूद-ए-काबा र्कायक्रम का आगाज हुआ। अध्यक्षता हाजी मो. मेहंदी एडवोकेट ने व संचालन शबीहुल हसन आज़मी ने किया। शायरों ने अपना कलाम पेश कर वाह-वाही बटोरी। शबीह मेरठी ने कहा कि “एक आंसू के एवज खुल्द मिलेगी हमको, उम्मे हसनैन ने हमसे किया है वादा।” छौलस से आये हुए साहिल ने कहा कि ” गरीबी के सबब जब कर्बला हम जा नहीं पाते, अजाखाने के हम आंगन में आकर बैठ जाते हैं।” महफ़िल को आगे बढ़ाते हुए मऊ से आए कलीम मारुफी ने कहा कि ‘खुशबू का जिसके अजल से था बहुत ही चर्चा, उसके चेहरे से है खालिक ने हटाया पर्दा।”महफिल की रौनक उस वक्त बढ़ गई जब जौहर नकवी शिकारपुरी ने पढ़ा कि “जहां हुसैन का फर्शे अज़ा बिछा होगा, हजार महलों से बेहतर वो झोपड़ा होगा।” इसके बाद जैगम कोपागंजी ने पढ़ा ” रसूल वाले तो पहले सलाम करते हैं, फिर उसके बाद ही कोई कलाम करते हैं।” बताते चलें कि इस तरही महफ़िल की मिसरे तरह था “इल्म का शहर मोहम्मद है अली दरवाजा”। इसी मिसरे पर शेर पढ़ते हुए मुजीब सिद्दीकी ने कहां की “तालीम ए शहर जो हो पहले वह दर पर आए, इल्म का शहर मोहम्मद हैं अली दरवाजा।” महफ़िल में आये सभी शायरों ने इसी मिसरे पर अपना कलाम पेश किया। मिर्जापुर से आए शहंशाह मिर्जापुरी ने कहा कि “आशिक ए हैदर का यह मेयार होना चाहिए, मुफलिसी में भी उसे खुद्दार होना चाहिए।” महफिल का सिलसिला शाम तक चलता रहा । तमाम स्थानीय शायरों ने भी महफ़िल में अपने कलाम पेश किए। इस मौके पर रफत हुसैन, सिब्ते हसन, एजाज रिजवी, आगा अली मोहम्मद, श्यामू, आमिर, कामिल, कुमैल, सुल्तान रिजवी, मोना, जावेद, फिरोज, आफताब, अशफाक के अलावा ईं. क़ैसर अब्बास, मौलाना नसीरुद्दीन, अहमर रिज़वी एडवोकेट, मुनव्वर रिजवी आदि अकीदतमंद मौजूद रहे।