मोहब्बत-ए-रसूल ईमान की जान – अब्दुल हबीब
गोरखपुर। नौजवान एक्शन कमेटी के तत्वावधान में अज़मतनगर निकट इमामचौक रसूलपुर में रविवार की रात ‘जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी’ जलसा हुआ।
बतौर मुख्य अतिथि महाराष्ट्रा के सैयद शाह अब्दुल हबीब ने कहा कि मोहब्बत-ए-रसूल (हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम) ईमान की जान है, इसीलिए तो आला हजरत ने रसूल-ए-पाक की शान में कहा है कि ‘वो जो न थे तो कुछ न था, वो जो न हो तो कुछ न हो, जान है वो जहान की, जान है तो जहान है’। जिस दिल में रसूल-ए-पाक की मोहब्बत ना हो वह दिल मोमिन का दिल हो ही नहीं सकता। ये एजाज क्या कम है कि हमारे रसूल-ए-पाक अल्लाह तआला के महबूब है। जो रसूल-ए-पाक की शान में अदना सी भी गुस्ताखी करे वह मरदूद है।
उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम में तमाम समस्याओं का हल कुरआन, हदीस, इज्माये उम्मत व कयास के जरिए संभव है। इल्म-ए-दीन खुद भी हासिल करें और अपने बच्चों को भी सिखाएं। ताकि आपको कोई गुमराह ना कर सके। समाज में फैली बुराईयों से खुद भी बचें और दूसरों को भी बचाएं। यह हम सब की जिम्मेदारी है।
विशिष्ट अतिथि मौलाना मोहम्मद अहमद ने गाजी मियां की जिंदगी पर रौशनी डालते हुए कहा कि हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी सारी जिंदगी रजा-ए-इलाही में गुजार दी, इसलिए वह आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं। कयामत तक उनका फैज जारी रहेगा। हमें चाहिए कि उनकी बतायी तालीमात पर अमल कर जिक्र-ए-इलाही व शरीयत के मुताबिक जिंदगी गुजारें ताकि दुनिया भी संवरें और आखिरत भी।
विशिष्ट अतिथि मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि रसूल-ए-पाक (हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम) आखिरी नबी व रसूल है। आप के बाद नबूवत व रिसालत का दरवाजा हमेशा के लिए बन्द कर दिया गया। आप को दीन-ए-कामिल अता किया गया। चुनांचे क़यामत तक सिर्फ और सिर्फ शरीअत-ए-मोहम्मदिया ही इंसानों के लिए हिदायत की राह है। आप क़यामत तक पूरी इंसानियत के लिए पैगम्बर बना कर भेजे गए। आप सारी कायनात के लिए रहमत भी है। अब जो कोई नबूवत का दावा करे समझ लीजिए वह झूठा, मक्कार, फरेबी, गुमराह, दज्जाल व इस्लाम से खारिज है।
अंत में सलातो सलाम पढ़ा गया। दुआ मांगी गयी। शीरीनी तकसीम की गयी। अध्यक्षता सगीर अहमद कादरी व संचालन तामीर अहमद कादरी ने किया। कार्यक्रम का आगाज तिलावत-ए-कुरआन शरीफ से मौलाना शादाब आलम ने किया। नात सबील व मिस्बाहुल हक ने पढ़ीं।
इस मौके पर अब्दुल रहीम, हाजी इरशाद कादरी, शमीम अहमद, हमीदुल्लाह, हफीजुल्लाह कादरी, मो. असलम, हसन रजा, हिमायतुल्लाह, फरहतुल्लाह, मो. रफीक, अमीरुद्दीन, जावेद आदि मौजूद रहे।