“जश्न-ए-इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा” जलसा
गोरखपुर। फ़ैजान-ए-आला हज़रत कमेटी के तत्वावधान में सोमवार को अहमद नगर चक्शा हुसैन नूरी मस्जिद के करीब ‘जश्न-ए-इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा रजियल्लाहु अन्हु’ जलसा आयोजित किया गया।
मशहूर इस्लामिक विद्वान मुफ्ती रिजवान अहमद शरीफी ने कहा कि हज़रत इमाम-ए-आज़म अबू हनीफ़ा का नाम नोमान है। आप अबू हनीफ़ा के नाम से मशहूर है। आपकी पैदाइश 80 हिजरी में इराक़ के कूफा शहर में हुई। आपके वालिद का नाम साबित था। आप हज़रत अली की दुआ है। इल्म-ए- हदीस की मारूफ शख्सियत आमिर शाबी कूफी के मशवरे पर इल्म-ए-कलाम, इल्म-ए-हदीस और इल्म-ए-फिक़ह की तरफ ध्यान दिया और ऐसा कमाल पैदा किया कि इल्मी व अमली दुनिया में इमाम-ए-आज़म कहलाए। आप बहुत इबादतगुजार व परेहजगार थे। आपने कई मुल्कों के बेशुमार उलेमा से इल्मी फैज हासिल किया। आपने सहाबा-ए-किराम की एक जमात को देखने के अलावा कई सहाबा खास कर हज़रत अनस बिन मालिक से हदीस रिवायत भी की है। गरज़ ये कि हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा ताबई हैं और आपका ज़माना सहाबा, ताबईन और तबे ताबईन का ज़माना है।

उन्होंने आगे कहा कि हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा ने क़ुरआन-ए-करीम और हदीस के ज़खीरे से उम्मते मुस्लिमा को इस तरह मसाइले शरइया से वाक़िफ कराया कि 1300 साल गुज़र जाने के बाद भी तक़रीबन 75 फीसद उम्मते मुस्लिमा उस पर चल रही है और ताकयामत तक चलती रहेगी। इमाम अबू हनीफ़ा को हदीस-ए-रसूल सिर्फ दो वास्तो (सहाबी और ताबई) से मिली है। बल्कि कई हदीस इमाम अबू हनीफ़ा ने सहाबा-ए-किराम से बराहे रास्त भी रिवायत की है।
युवा मुस्लिम विद्वान मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने कहा कि हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा के उस्ताद शेख हम्माद, शेख इब्राहीम नखई व शेख अल्क़मा है। शेख हम्माद की सोहबत में इमाम अबू हनीफ़ा 18 साल रहे। शेख हम्माद के इंतिकाल के बाद कूफा में उनकी मसनद पर इमाम अबू हनीफा को ही बैठाया गया। गरज़ ये कि इमाम अबू हनीफ़ा हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु के इल्मी वरसा के वारिस बने।मुहद्दिसीन की एक जमात ने 8 सहाबा से इमाम अबू हनीफ़ा का रिवायत करना साबित किया है।
उन्होंने आगे कहा कि पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने अपनी हयात में ही हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा के बारे में बशारत दी थी। उस दौर के उलेमा आपके बारे में कहते थे कि कूफा के इमाम अबू हनीफ़ा और उनका फिक़ह पर हमें रश्क है। इमाम अबू हनीफ़ा पेचीदा मसाइल को सब अहल-ए-इल्म से ज़्यादा जानने वाले थे। इमाम अबू हनीफ़ा के पास वह इल्म था जिसको अहले ईमान के दिल क़बूल करते है। खलीफा-ए-वक्त ने 146 हिजरी में आपको क़ैद कर लिया। आपकी मक़बूलियत से खौफज़दा खलीफा-ए-वक़्त ने इमाम साहब को ज़हर दिलवा दिया। जिस वजह से 150 हिजरी में सहाबा व बड़े-बड़े ताबेईन से रिवायत करने वाला एक अज़ीम मुहद्दिस व फक़ीह दुनिया से रुखसत हो गया।
तिलावत कारी अरशद हुसैन ने की। नात शादाब अहमद रजवी, दानिश व मो. दारैन ने पढ़ीं। अध्यक्षता हाफिज मो. शम्सुद्दीन व संचालन मौलाना सैफ अली ने किया। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क व मिल्लत के लिए दुआ की गयी।
इस मौके पर मेहताब आलम, शादाब, फरहान वारसी, सलीम, सोहराब, सैफ, हाफिज जमालुद्दीन, मौलाना सेराज, साजिद, उस्मान, मौलाना नूर मोहम्मद, मौलाना अाबिद, मौलाना अमीरुद्दीन, नजरे आलम सहित तमाम लोग मौजूद रहे।