ग़रीब नवाज़ के पैग़ामात बेशकीमती खज़ाना, सब अपनाएं – मौलाना मकसूद

“जश्न-ए-ख्वाजा ग़रीब नवाज़” कार्यक्रम का तीसरा दिन

गोरखपुर। नार्मल स्थित दरगाह  हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां पर महान सूफी हजरत मोईनुद्दीन चिश्ती अलैहिर्रहमां (ख्वाजा ग़रीब नवाज़) के 806वें उर्स-ए-पाक के मौके पर ‘छह दिवसीय जश्न-ए-ख्वाजा ग़रीब नवाज़’ कार्यक्रम के तीसरे दिन मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि हजरत मोईनुद्दीन हसन चिश्ती अलैहिर्रहमां (ख्वाजा ग़रीब नवाज़) के पैग़ामात बेशकीमती खजाना है। जिन्हें सभी को अपनी जिंदगी में अपनाना चाहिए। ग़रीब नवाज़ फरमाते है कि गुनाह करने से इतना नुकसान नहीं होता जितना कि अपने किसी भाई को हकीर (तुच्छ) या जलील समझने से होता है। चार काम नफ्स के लिए जीनत (शोभा) है, भूखे को खाना खिलाना, मुसीबतजदा की मदद करना, जरूरतमन्दों की जरूरत पूरी करना, दुश्मन से मेहरबानी और अच्छे सुलूक से पेश आना।

आगे फरमाते है कि मुहब्बत के चार दर्जे है, हमेशा खुदा का जिक्र करना, जिक्रे इलाही को खूब दिल लगाकर करना और उसके जिक्र में खुश रहना, वह खूबी पैदा करना जो दुनियावी मुहब्बत से अलग हो, हमेशा रोते रहना। बुजुर्गी की निशानी यह है कि खुदा के सिवा तमाम चीजों की मुहब्बत दिल से निकाल दे। इल्म (ज्ञान) दरिया की धारा है और खुदा का ध्यान दरिया की एक लहर है, फिर खुदा कहां और बन्दा कहां। इल्म खुदा को है और इरफान (खुदा का ध्यान) बंदे को है। आलिम (विद्वान) की जियारत और दरवेशों की दोस्ती से बरकत हासिल होती है। मां-बाप का मुंह मुहब्बत से देखना औलाद के लिए इबादत है। जो लड़का मां-बाप की कदम बोसी हासिल करता है उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते है। ख्वाज़ा बायजीद बुस्तामी र.अ. ने फरमाया है कि मैने जितने भी मर्तबे पाए, अपने मां-बाप से पाए।

इस मौके पर जमशेद अहमद, हाफिज शहादत हुसैन, हाफिज अशरफ रजा, हाफिज आतिफ रजा, अतीकुर्रहमान, कारी महबूब रजा, शाकिब, अब्दुल एजाज, असअद सहित तमाम लोग मौजूद रहे।