मुख्यमंत्री से शिकायत के बाद जिला प्रशासन भी सक्रिय हुआ, आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज
गोरखपुर। उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड गोरखपुर की स्पेशल कंपोनेंट योजना में ऋण एवं अनुदान वितरण में सुनियोजित तरीके से 1.12 करोड़ रुपये के घोटाले में कैंट थाने में आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड गोरखपुर की स्पेशल कंपोनेंट योजना में ऋण एवं अनुदान वितरण में नियमों को ताक पर रख कर सरकार द्वारा प्रदान की गई अनुदान की धनराशि का गबन हुआ। कई स्तर की जांच के बाद जिलाधिकारी के विजयेंद्र पांडियन के निर्देश पर समाज कल्याण विभाग ने विभाग के तत्कालीन सहायक ग्राम विकास अधिकारी अमरीका सिंह एवं दो ग्राम विकास अधिकारियों रामप्रीत और चंद्रभान गुप्ता के खिलाफ नामजद एफआईआर को दर्ज कराई। एफआईआर में उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड की शाखा बांसगांव के तत्कालीन शाखा प्रबंधन एवं अन्य अन्य अज्ञात कर्मचारियों को भी आरोपी है।
उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड की शाखा बांसगांव से विकास खण्ड उरुवा, गोला, कौड़ीराम, बांसगांव एवं गगहा द्वारा दी गई स्वीकृति के आधार पर अनुसूचित जातियों के लोगों को स्वत: रोजगार के लिए अनुदान की धनराशि जारी की गई थी। यह अनुदान योजना 2011-12 से 2015-16 तक संचालित की गई। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में 113 व्यक्ति स्थलीय जांच में मिले ही नहीं। इसके बाद पुन: जांच कराई गई तो यह जानकारी मिली कि इस योजना के अंतर्गत 1126 लाभार्थियों के नाम पर 1.12 करोड़ का घोटाला हुआ। यह घोटाला 2011 से 2014 के बीच अंजाम दिया गया। सामाजिक कार्यकर्ता संजय मिश्र की आरटीआई से घोटाला उजागर हुआ तो इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की गई। इसके बाद जिला प्रशासन भी सक्रिय हुआ।
इस घोटाले में आरोपी अमरीक सिंह का दिसंबर 2012 में शुगर की बीमारी से निधन हो चुका है। शेष दो आरोपी रामप्रीत सिंह दिसंबर 2017 और चंद्रभान गुप्ता 2016 में ही सेवानिवृत हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड ने जिम्मेदार शाखा प्रबंधन और कर्मचारियों का नाम समाज कल्याण विभाग को नहीं बताया, इसलिए जिम्मेदार शाखा प्रबंधन का नाम एफआईआर में शामिल नहीं हो सका। जिलाधिकारी एवं वित्त विकास निगम के एमडी के आदेश के बाद भी आरोपियों को धनराशि की रिकवरी के लिए नोटिस नहीं दिया जा सका है।
जिलाधिकारी के फोन के बाद दर्ज हुई एफआईआर
आरोप है कि कैंट थाने के एसएचओ समाज कल्याण विभाग की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी कर रहे थे। जबकि शिकायत के साथ डीएम के दो बार के आदेश की प्रति और निगम के एमडी के आदेश की प्रति भी लगाई गई थी। इस मामले के जांच रिपोर्ट की प्रतियां भी शामिल थी। उसके बाद भी एफआईआर दर्ज न होने पर जिलाधिकारी के विजयेंद्र पांडियन को समाज कल्याण विभाग के कर्मचारियों ने शिकायत की। डीएम ने एसएचओ कैंट को फोन पर निर्देश दिए तब जाकर एफआईआर दर्ज हुई।