Mock Drill :1971 युद्ध से पहले देश की तैयारी- सायरन बजते ही लाइट बंद, घरों के आगे खुदे गड्ढे – ऐसे हुआ था पाकिस्तान के खिलाफ मॉक ड्रिल

Mock Drill :1971 युद्ध से पहले देश की तैयारी- सायरन बजते ही लाइट बंद, घरों के आगे खुदे गड्ढे – ऐसे हुआ था पाकिस्तान के खिलाफ मॉक ड्रिल

Mock Drill : इस मॉक ड्रिल में जैसे ही सायरन बजता, पूरा इलाका अंधेरे में डूब जाता था, घरों के आगे खाइयाँ बनाई जाती थीं ताकि बमबारी से बचा जा सके। 1971 के भारत-पाक युद्ध से पहले देश ने सुरक्षा अभ्यास के तहत इस तरह की तैयारियां की थीं ताकि आम नागरिक भी युद्ध स्थिति का सामना कर सकें।

Mock Drill : भारत किसी भी आपात स्थिति के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर रहा है। इसी कड़ी में बुधवार, 7 मई को देशभर में युद्ध जैसी परिस्थिति का ‘मॉक ड्रिल’ आयोजित किया जाएगा। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वे नागरिकों और खासकर छात्रों को हमले की स्थिति में सुरक्षित रहने के लिए ट्रेनिंग दें। यह मॉक ड्रिल खास तौर पर नागरिक सुरक्षा के उपायों पर केंद्रित होगी।

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यह निर्णय ऐसे समय पर लिया गया है जब पाकिस्तान लगातार 11 रातों से नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी कर रहा है, जिससे क्षेत्र में तनाव गहरा गया है। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा किए गए हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। यह हमला 2019 के पुलवामा हमले के बाद सबसे घातक माना जा रहा है।

इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कूटनीतिक कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सख्त संदेश देते हुए कहा कि इस हमले के पीछे जो लोग हैं, उन्हें ऐसी सजा मिलेगी जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते।

1971 के बाद पहली बार नागरिकों के लिए युद्ध जैसी मॉक ड्रिल, इतिहास में सिर्फ एक बार हुआ था ऐसा अभ्यास

भारत में नागरिकों की सुरक्षा को लेकर मॉक ड्रिल का आदेश इससे पहले 1971 में गृह मंत्रालय ने दिया था। उसी वर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच दो मोर्चों पर युद्ध हुआ था, जो पाकिस्तान के दो हिस्सों में बंटने और बांग्लादेश के गठन के साथ समाप्त हुआ।

दिलचस्प बात यह है कि 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान, जब दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थीं, तब भी ऐसी कोई नागरिक मॉक ड्रिल नहीं कराई गई थी। यहां तक कि 2001-2002 में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान, जब संसद हमले के बाद भारत ने अपने सैनिकों को सीमा पर तैनात कर दिया था और युद्ध का खतरा मंडरा रहा था, तब भी आम लोगों को युद्ध जैसी तैयारी नहीं कराई गई थी। इसके बाद 2003 में युद्धविराम समझौता हुआ था।

1971 में मुंबई में 13 रातों तक रहा ब्लैकआउट, मॉक ड्रिल में बच्चे भागते थे चर्च की ओर

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान मुंबई (तब बॉम्बे) लगातार 13 रातों तक अंधेरे में डूबा रहा। आर्थिक राजधानी होने के कारण पाकिस्तान की नजर में यह एक अहम निशाना था। पश्चिमी नौसेना कमान का मुख्यालय भी यहीं था, जिससे इसकी रणनीतिक अहमियत और बढ़ जाती थी।

डेक्कन हेराल्ड में माइकल पात्राओ लिखते हैं कि कैसे सांताक्रूज़ स्थित उनके स्कूल, सेंट एंथोनी हाई स्कूल में मॉक ड्रिल होती थी। “सायरन बजते ही हमें चर्च में भागने को कहा जाता था।”

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, तब गाड़ियों की हेडलाइट्स भूरे कागज़ से ढकी जाती थीं, और दोपहर में ही शादियां होती थीं। मॉक ड्रिल्स में सायरन बजते ही लोग BEST बस से उतर जाते, सिर ढकते और पास की इमारतों में शरण लेते। यह मॉक ड्रिल मुंबईवासियों के लिए युद्ध की भयावह तैयारी का हिस्सा बन गई थी।

1971: दिल्ली में एल-आकार की खाइयाँ, खिड़कियों पर काला कागज और ब्लैकआउट का डर

1971 के युद्ध से पहले दिल्ली समेत कई शहरों में सुरक्षा के व्यापक इंतज़ाम किए गए थे। वरिष्ठ पत्रकार एम. आर. नारायण स्वामी लिखते हैं कि दक्षिणी दिल्ली के नेताजी नगर में दो कमरों के फ्लैटों के बाहर एल-आकार की खाइयाँ खोदी गई थीं ताकि लोग हवाई हमले की स्थिति में शरण ले सकें।

सरकारी कर्मचारियों से कहा गया था कि वे खिड़कियों पर मोटा भूरा या काला कागज चिपकाएं ताकि रात में रोशनी बाहर न जाए। इसे “ब्लैकआउट” कहा जाता था।

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