कई साल पहले भी ऐसा मामला पेश आया था। जब मुसलमानों ने दो ईद मनायी थीं
गोरखपुर। माह-ए-रमजान के रोजे जैसे-जैसे गुजर रहे हैं मुसलमानों की धड़कनें तेज होती जा रही हैं। पहले ही रमज़ान के चांद को लेकर मुसलमान दो समूहों में बंटे हुए हैं। देवबंदियों ने 17 मई गुरुवार से रोजा रखना शुरु किया तो वहीं सुन्नी बरेलवी मुसलमानों (अहले सुन्नत वल जमात) ने 18 मई शुक्रवार से रोजा रखा। यह विवाद यहीं नहीं थमा। जहां देवबंदियों ने 5 जून मंगलवार से मस्जिदों में एतिकाफ शुरु किया तो वहीं सुन्नी बरेलवी मुसलमानों ने 6 जून बुधवार से एतिकाफ की शुरूआत की। शब-ए-कद्र की ताक रातों को लेकर भी दोनों समूहों में विरोधाभाष है। वहीं अलविदा (रमज़ान के अंतिम जुमा) को लेकर यह विरोध और खुलकर सामने आ गया। देवबंदी सुमदाय ने अलविदा की नमाज 8 जून को पढ़ी तो वहीं सुन्नी बरेलवी मुसलमानों ने 15 जून को अलविदा मनाने का फैसला किया। अब ईद को लेकर संशय बन चुका है। सभी कह रहे है क्या अबकी दो-दो ईद मनायी जायेगी? कई साल पहले भी ऐसा मामला पेश आया था। जब मुसलमानों ने दो ईद मनायी थीं। इस बार भी कुछ वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है। यह स्थिति केवल गोरखपुर में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में है। अबकी गुरुवार 14 जून को जब देवबंदी 29 रोजा मुकम्मल करके ईद के चांद का दीदार करने की कोशिश करेंगे तो उस वक्त सुन्नी बरेलवी मुसलमानों का 28वां रोजा मुकम्मल होगा। अब अगर 14 जून को ईद का चांद नजर न आया तो देवबंदी 15 जून शुक्रवार को फिर से अलविदा मनाकर 30 रोजा मुकम्मल करेंगे और 16 जून शनिवार को ईद मनायेंगे, वहीं अगर 14 जून गुरुवार को चांद नजर आ गया तो 15 जून शुक्रवार को ईद मनायेंगे। वहीं सुन्नी बरेलवी मुसलमान चांद की तस्दीक के बाद ही कोई कदम उठायेंगे। अब तमाम लोग यही दुआ कर रहे हैं कि ईद का चांद शुक्रवार 15 जून को ही नजर आए और सभी मुसलमान एक साथ मिलकर 16 जून शनिवार को ईद मनाएं। सब कुछ चांद पर निर्भर है।
वहीं सोशल मीडिया के जरिए 15 जून को ईद मनाने की अफवाह उड़ायी जा रही है। सऊदी अरब के मौसम विभाग का हवाला देकर मुस्लिम कौम को गुमराह किया जा रहा है। सऊदी अरब दूसरा मुल्क है वहां के हालत हिन्दुस्तान से मुख्तलिफ हैं। उसके बावजूद वहां का हवाला दिया जा रहा है और पूरी दुनिया में 15 जून को ईद मनाने का दावा किया जा रहा है। जो सरासर गलत व झूठा है। हदीस-ए-रसूल के खिलाफ पहले से चांद की घोषणा कर मुसलमानों के जज्बात से खेला जा रहा है। इन अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए मुस्लिम बुद्धजीवियों को पहल करनी चाहिए जो नहीं की जा रही है। जिस वजह से मुस्लिम समाज में दरार बढ़ती जा रही है।
– रोजा चांद देख कर शुरू करो और चांद देख कर रोजा बंद कर दो
तंजीम कारवाने अहले सुन्नत के सदर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि पांच महीनों का चांद देखना वाजिब-ए-किफाया है शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़ीक़ादा, जि़लहिज्जा। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने फरमाया कि महीना 29 का भी होता है और 30 का भी। रोजा चांद देख कर शुरू करो और चांद देख कर रोजा बंद कर दो। अगर आसमान साफ नहीं है तो 30 की गिनती पूरी करो।
उन्होंने कहा कि टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट, एसएमएस, सोशल मीडिया से चांद का हो जाना नहीं साबित हो सकता है, न बाजारी अफवाह, जंतरियों और अखबारों में छपा होना कोई सबूत है। आजकल अमूमन देखा जाता है 29 रमज़ान को बकसरत एक जगह से दूसरी जगह उपरोक्त माध्यमों से संदेश भेजे जाते है चांद हुआ या नहीं। और कहीं से यह संदेश आया कि फलां जगह ईद का चांद देखा गया तो बस लो ईद आ गयी, यह महज नाजायज व हराम है।