लाखों लोगों को रोजगार देने वाला पूर्वांचल का यह उद्योग अब अंतिम सांसें ले रहा है जिसको जिंदा रखने के लिए सरकार के पास ऑक्सीजन का कोई इंतजाम नहीं है।
गोरखपुर। बुनकरों के हालात हालत चिंताजनक है। सूत की बढ़ती कीमतें और सिमटते बाजार की वजह से पिछले दो साल में 500 पॉवरलूम बंद हो गये या उसे कबाड़ में फरोख्त कर दिया गया। सबंधित विभाग ने इसकी तस्दीक की है हालांकि हकीकत में बंद होने वाले पॉवरलूमों की तादाद इससे कहीं ज्यादा है। गोरखनाथ, पुराना गोरखपुर, जाहिदाबाद, चक्शा हुसैन, नौरंगाबाद, अजयनगर, रसूलपुर, जमुनहिया, पिपरापुर, हुमायूंपुर वगैरह मोहल्लों में पॉवरलूम का शोर थमता जा रहा है। बुनकरों के लिए मरकजी (केंद्र) और रियासती (प्रदेश) हुकूमतों ने ढ़ेरों स्कीमों का ऐलान किया था लेकिन हकीकत में उसका फायदा बुनकरों को नहीं मिल पा रहा है। पॉवरलूम बुनकरों को फिक्स रेट पर बिजली मिलती थी लेकिन रियासती हुकूमत ने इसे भी बंद करके सब्सिडी का इंतजाम किया है। इस सब्सिडी का फायदा लेने के लिए बुनकरों को ढ़ेरों कागजी कार्यवाहियों से दो चार होना पड़ रहा है हालांकि फिक्स रेट पर बिजली का सबसे ज्यादा फायदा महाजनों ने उठाया। बिजली लोड की हद ज्यादा होने की वजह से महाजनों ने एक ही जगह पर दो-दो सौ पॉवरलूम फैक्ट्री बना ली और दो-दो शिफ्ट में काम करने लगे अब उन्हें बुनकरों से बने कपड़े लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती। दूसरी जानिब कपड़ों का बाजार और महाजनों की तरफ से मांग न होने के सबब बुनकरों के पास कोई काम नहीं बचा है। अहिस्ता-अहिस्ता बुनकरों ने पॉवरलूम बंद करके उसे कबाड़ में बेचना शुरू कर दिया। बुनकरों ने पॉवरलूम बेचकर चाय, फल और सब्जी की दुकानें खोल ली हैं। कुछ तो अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करने पर मजबूर हैं।
बुनकरों के लिए मरकजी (केंद्र) और रियासती (प्रदेश) हुकूमतों ने ढ़ेरों स्कीमों का ऐलान किया था लेकिन हकीकत में उसका फायदा बुनकरों को नहीं मिल पा रहा है।
आपको बतातें चलें कि पिछले साल मीडिया ने बुनकरों की समस्या को विधानसभा चुनाव के दौरान जोर शोर से उठाया था। उसके बाद बुनकर बाहुल्य क्षेत्र तमाम पार्टियों के दिग्गज नेताओं का तांता लगा गया था। बुनकरों ने वोट बहिष्कार की बात कही थी। गोरखपुर में जनसभाओं के दौरान मायावती, अखिलेश यादव, राहुल गांधी ने बुनकरों की समस्या पर रोशनी डाली थी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की गोरखपुर में हुई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पत्रकारों ने बुनकरों की समस्याओं के बाबत सवाल भी किया था उस वक्त अमित शाह के साथ योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। अमित शाह व योगी आदित्यनाथ ने आश्वासन दिया था कि बुनकरों की समस्या पर तवज्जो दी जायेगी। बताने का हासिल यह है कि हर पार्टी, केंद्र व प्रदेश सरकार सभी बुनकरों की समस्या से अवगत है उसके बावजूद बुनकरों की समस्या का हल होता कहीं से दिख नहीं रहा है।
अहिस्ता-अहिस्ता बुनकरों ने पॉवरलूम बंद करके उसे कबाड़ में बेचना शुरू कर दिया। बुनकरों ने पॉवरलूम बेचकर चाय, फल और सब्जी की दुकानें खोल ली हैं। कुछ तो अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करने पर मजबूर हैं।
मिली जानकारी के अनुसार बुनकरों के हालात 1990 से उस वक्त खराब होना शुरू हुए, जब कताई मिलों के साथ-साथ यूपी स्टेट हैंडलूम कार्पोरेशन भी बंद हो गया। कार्पोरेशन से बुनकरों को न सिर्फ सस्ते दाम पर सूत मिलता था बल्कि उनके द्वारा तैयार कपड़ें खरीद लिए जाते थे। कताई मिलें और कार्पोरेशन के बंद होने से बुनकर मुकम्मल तौर पर महाजनों के मोहताज हो गए। महाजन उन्हें वजन करके धागा देते और बुनकर बुनाई करके उतने ही वजन का कपड़ा देते। उसके एवज में मीटर के हिसाब से बुनकर को मजदूरी मिलती थी। सन् 1995 तक बुनकर को 4 रुपया प्रति मीटर के हिसाब से मजदूरी मिलती थी जो अब घटकर 3 रुपया 80 पैसे तक आ गई है।
किस्सा मुख्तसर जब सीएम के जिले के बुनकरों का यह हाल है तो प्रदेश के बुनकरों का क्या हाल होगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। मेक इन इंडिया जैसे नारे यहां दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। लाखों लोगों को रोजगार देने वाला पूर्वांचल का यह उद्योग अब अंतिम सांसें ले रहा है जिसको जिंदा रखने के लिए सरकार के पास ऑक्सीजन का कोई इंतजाम नहीं है।