Ahmadiyya Muslim Community : पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर बढ़ता उत्पीड़न डर और हिंसा का माहौल

Ahmadiyya Muslim Community : पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर बढ़ता उत्पीड़न डर और हिंसा का माहौल

Ahmadiyya Muslim Community : पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर धार्मिक, कानूनी और सामाजिक अत्याचार लगातार जारी हैं। 1974 में संविधान संशोधन के जरिए अहमदियों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया था, जिसके बाद से उनके खिलाफ हिंसा, भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं तेजी से बढ़ीं।

Ahmadiyya Muslim Community : अहमदियों को न तो अपनी धार्मिक पहचान दिखाने की अनुमति है, न ही वे मस्जिदें बना सकते हैं या इस्लामी शब्दों का उपयोग कर सकते हैं। पुलिस और प्रशासन भी कई बार उनके उत्पीड़न में लिप्त पाए गए हैं। मौलवियों की भड़काऊ राजनीति और कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में यह समुदाय आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर हिंसा और भेदभाव की घटनाएं लंबे समय से जारी हैं।

कभी उनकी मस्जिदों को ढाया जाता है, तो कभी समुदाय के सदस्यों की निर्मम हत्या कर दी जाती है। हाल ही में सरगोधा में एक अहमदिया डॉक्टर की हत्या ने फिर से इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया। कुछ महीने पहले कट्टरपंथियों ने अहमदियों की कब्रों तक को नहीं बख्शा। 1974 में उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित करने के बाद से ही यह समुदाय धार्मिक स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए संघर्षरत है। कट्टरपंथ और कानूनी भेदभाव उनके अस्तित्व पर लगातार खतरा बना हुए हैं।

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अहमदिया मुसलमान कौन हैं? जानिए क्यों हैं विवादों में

अहमदिया मुस्लिम समुदाय एक धार्मिक आंदोलन है जिसकी स्थापना 1889 में मिर्जा गुलाम अहमद ने पंजाब के कादियान (अब भारत में) में की थी। यह इस्लाम के भीतर एक सुधारवादी संप्रदाय के रूप में शुरू हुआ और इसके अनुयायी खुद को मुसलमान मानते हैं। वे इस्लाम के पांच मूल स्तंभ—नमाज, रोजा, जकात, हज और तौहीद—का पालन करते हैं। हालांकि, अहमदिया समुदाय मिर्जा गुलाम अहमद को महदी और मसीहा मानता है, और कुछ मान्यताएं मुख्यधारा के सुन्नी और शिया मुसलमानों से अलग हैं। खासकर “अंतिम पैगंबर” की अवधारणा को लेकर विवाद गहराया, जिससे समुदाय को भारी विरोध और बहिष्कार का सामना करना पड़ा।

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय पर जुल्म क्यों हो रहे हैं? जानिए पांच बड़े कारण

पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय दशकों से धार्मिक, कानूनी और सामाजिक अत्याचारों का शिकार है। इसकी जड़ें गहरे धार्मिक मतभेदों और सरकारी नीतियों में छिपी हैं। अहमदियों की मान्यता कि मिर्जा गुलाम अहमद एक पैगंबर या महदी हैं, मुख्यधारा के मुसलमानों को स्वीकार नहीं है, जिससे उन्हें ‘काफिर’ करार दिया जाता है। 1974 में उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित किया गया और 1984 के अध्यादेश XX ने उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर सख्त पाबंदियां लगा दीं। ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग कर उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया जाता है। साथ ही, कट्टरपंथी संगठनों और सामाजिक बहिष्कार के चलते उनका जीवन लगातार खतरे में बना हुआ है।

पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय पर हिंसक घटनाएं: दशकों से जारी है अत्याचार का सिलसिला

पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय लगातार हिंसा और उत्पीड़न का शिकार बना हुआ है। हाल ही में मई 2025 में सरगोधा में अहमदिया चिकित्सक डॉ. शेख महमूद की गोली मारकर हत्या कर दी गई—यह एक महीने में तीसरा हमला था। 2024 में कराची में एक अहमदिया युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला, जबकि रावलपिंडी में एक अहमदिया व्यक्ति को कुल्हाड़ी से काट दिया गया। 2021 में पेशावर के 65 वर्षीय डॉक्टर अब्दुल कादिर को अहमदिया होने के चलते गोली मारी गई। इतिहास में 2010 लाहौर हमले में 94 लोग मारे गए और 1974 रब्वा व 1953 लाहौर दंगों में सैकड़ों अहमदियों की हत्या हुई। इन घटनाओं से साफ है कि यह समुदाय दशकों से कट्टरपंथ और नफरत का शिकार बना हुआ है।

जान और पहचान बचाने की जंग लड़ रहा है अहमदिया समुदाय

पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम समुदाय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। 1974 के संवैधानिक संशोधन में उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया और 1984 के अध्यादेश XX ने उनकी धार्मिक आज़ादी पर गंभीर पाबंदियां लगा दीं। इसके बाद से अहमदियों को न सिर्फ कानूनी भेदभाव का सामना करना पड़ा, बल्कि ईशनिंदा कानूनों के दुरुपयोग और कट्टरपंथी हिंसा ने उनके लिए हालात और भी बदतर बना दिए। लाखों अहमदिया अपनी जान और धार्मिक पहचान बचाने के लिए संघर्षरत हैं। बार-बार सरकार से सुरक्षा की मांग के बावजूद, उनकी आवाज अनसुनी रह जाती है और हिंसा का चक्र जारी रहता है।

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