Science News : दुनिया सच नहीं, हम एक सिमुलेशन में जी रहे हैं! ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के रिसर्चर का चौंकाने वाला दावा

Science News : दुनिया सच नहीं, हम एक सिमुलेशन में जी रहे हैं! ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के रिसर्चर का चौंकाने वाला दावा

Science News : एक ब्रिटिश रिसर्चर का दावा है कि दुनिया महज एक सिमुलेशन है और जिसका कोई अपना पहचान नहीं है। पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर, मेल्विन वोपसन का यह दावा काफी कुछ ‘द मैट्रिक्स’ फिल्म सीरीज के प्लॉट से मिलता-जुलता है।

Science News : क्या हमारी वास्तविकता एक बड़ा छलावा है? क्या हम जो देख रहे हैं, सुन रहे हैं और अनुभव कर रहे हैं, वह असली नहीं है? ब्रिटेन की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ने दावा किया है कि हमारी पूरी दुनिया एक सिमुलेशन हो सकती है। यह विचार साइंस फिक्शन की कहानी जैसा लग सकता है, लेकिन इसके पीछे गहरी वैज्ञानिक थ्योरी और तर्क छिपे हैं।

रिसर्च और दावा

ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड हचिंसन और उनकी टीम ने अपने शोध में कहा है कि यह संभव है कि हम एक कंप्यूटर जनित सिमुलेशन में जी रहे हों। इस थ्योरी को “सिमुलेशन हाइपोथेसिस” कहा जाता है, जो पहली बार 2003 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के दार्शनिक निक बोस्ट्रोम द्वारा पेश की गई थी। इस विचार के अनुसार, हमारी पूरी दुनिया, जिसमें हम रहते हैं, संभवतः एक उन्नत सभ्यता द्वारा बनाए गए सिमुलेशन का हिस्सा है।

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हचिंसन का कहना है कि कई ऐसी घटनाएं और वैज्ञानिक डेटा हैं जो इस थ्योरी का समर्थन करते हैं। उनका तर्क है कि ब्रह्मांड के मूलभूत नियम, जैसे कि भौतिकी के नियम, डिजिटल प्रोग्रामिंग के नियमों की तरह कार्य करते हैं।

ब्रह्मांड की संरचना और ‘पिक्सल्स’ का तर्क

रिसर्च में यह भी कहा गया है कि ब्रह्मांड की संरचना बेहद संगठित और गणनात्मक है, जैसे किसी वीडियो गेम या कंप्यूटर प्रोग्राम में पिक्सल्स होते हैं। हचिंसन ने यह दावा किया कि क्वांटम भौतिकी में पाए जाने वाले ‘प्लैंक लेंथ’ और ‘प्लैंक टाइम’ सिमुलेशन के पिक्सल्स जैसे हैं, जो यह संकेत देते हैं कि हमारी वास्तविकता निरंतर नहीं है, बल्कि यह एक डिजिटल संरचना हो सकती है।

सिमुलेशन थ्योरी के पक्ष में तर्क

कंप्यूटिंग क्षमता: उन्नत सभ्यताएं इतनी शक्तिशाली हो सकती हैं कि वे हमारी तरह की सजीव वास्तविकताओं का निर्माण कर सकें।
सामाजिक-वैज्ञानिक अनुसंधान: अगर एक सभ्यता अपने पूर्वजों के व्यवहार को समझने के लिए सिमुलेशन बना सकती है, तो हमारा जीवन भी ऐसे ही किसी प्रयोग का हिस्सा हो सकता है।
ब्रह्मांड के अनोखे संयोग: ब्रह्मांड में जीवन के लिए परिस्थितियां इतनी सटीक हैं कि यह एक प्रोग्रामित डिजाइन की तरह लगती हैं।

आलोचना और संदेह

हालांकि, यह थ्योरी सभी वैज्ञानिकों के लिए स्वीकार्य नहीं है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि सिमुलेशन थ्योरी को साबित करने के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं है। यह भी तर्क दिया जाता है कि यह थ्योरी हमारी समझ और सोच की सीमाओं का परिणाम हो सकती है।

दर्शन और विज्ञान का मिलन

सिमुलेशन थ्योरी केवल विज्ञान ही नहीं, बल्कि दर्शन से भी जुड़ी है। यह प्रश्न उठता है कि अगर हम सिमुलेशन में हैं, तो कौन इसे चला रहा है? क्या हम स्वयं अपने सिमुलेशन के निर्माता हैं, या कोई बाहरी उन्नत शक्ति?

सार्वजनिक प्रतिक्रिया

यह थ्योरी सोशल मीडिया और वैज्ञानिक समुदाय में चर्चा का विषय बनी हुई है। लोग इसे रोचक, लेकिन डरावना भी मानते हैं।

भविष्य में शोध की संभावनाएं

वैज्ञानिक इस विषय पर और अधिक शोध कर रहे हैं। आने वाले दशकों में तकनीक और भौतिकी के विकास के साथ, सिमुलेशन थ्योरी की सच्चाई पर और प्रकाश डाला जा सकता है।

निष्कर्ष

भले ही हम एक सिमुलेशन में जी रहे हों या न हों, यह विचार हमारे ब्रह्मांड और वास्तविकता की समझ को चुनौती देता है। यह न केवल विज्ञान की नई सीमाओं को दर्शाता है, बल्कि हमें अपने अस्तित्व पर गहराई से सोचने पर मजबूर करता है।

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