Sunita Williams : “स्पेसक्राफ्ट ‘उगलेगा’ आग, खुलेंगे 4 पैराशूट- सुनीता विलियम्स की वापसी में आखिरी 46 मिनट का क्या होगा अहम रोल?”

Sunita Williams : “स्पेसक्राफ्ट ‘उगलेगा’ आग, खुलेंगे 4 पैराशूट- सुनीता विलियम्स की वापसी में आखिरी 46 मिनट का क्या होगा अहम रोल?”

Sunita Williams : सुनीता विलियम्स के साथ वापस आ रहा ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट धरती पर लैंड करेगा या समुंदर में गिरेगा, ये तय होना बाकी है। खास 7 मिनट में ड्रैगन कैप्सूल आग के गोले में बदल जाता है, जब चार पैराशूट खुलते हैं और स्पेसक्राफ्ट धीमा होता है। ये क्षण बहुत ही संवेदनशील होते हैं, जिनमें सटीक तकनीकी प्रक्रिया होती है।

Sunita Williams : इंतजार अब खत्म होने को है। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स 9 महीने के लंबे अंतरिक्ष मिशन के बाद 19 मार्च को तड़के 3.27 बजे धरती पर लौटेंगी। उन्हें वापस लाने की जिम्मेदारी SpaceX के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट पर है, जो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से निकल चुका है। अब सवाल है कि क्या यह ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट धरती पर लैंड करेगा या समुंदर में गिरेगा? कैप्सूल के दूसरे हिस्से से अलग होने के बाद, वो 7 मिनट बेहद अहम होते हैं, जब ड्रैगन कैप्सूल आग के गोले में बदलता है। हम आपको ये सभी घटनाएं सरल भाषा में समझाएंगे।

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सुनीता विलियम्स और उनके साथी अंतरिक्ष यात्री बुधवार, 19 मार्च को धरती पर लौटेंगे, और उनके वापस आने का सफर 46 मिनट का होगा। ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट का फ्लोरिडा तट पर 7 संभावित स्प्लेशडाउन साइट्स में से एक पर समुंदर में गिरना तय है। इनमें से 3 साइट्स गल्फ ऑफ मैक्सिको की तरफ और 4 अटलांटिक सागर की तरफ हैं। स्पेसक्राफ्ट के अंतिम आर्बिट ट्रेजेक्टरी को तय करने के लिए नासा और SpaceX के वैज्ञानिक उसके थ्रस्टर का उपयोग करते हैं, जिससे स्पेसक्राफ्ट की दिशा बदली जाती है। यह प्रक्रिया न्यूटन के तीसरे नियम का पालन करती है, जहां थ्रस्टर से लागू बल स्पेसक्राफ्ट को मोड़ता है। धरती के वायुमंडल में घुसने के बाद, ड्रैगन के धरती पर लैंड करने से पहले लगभग 46 मिनट का बेहद अहम वक्त होता है, जिसमें कई संवेदनशील तकनीकी प्रक्रियाएं होती हैं।

जैसे ही ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, परिस्थिति गंभीर हो जाती है। वायुमंडल में घुसने से पहले, ड्रैगन कैप्सूल अपने ट्रंक मॉड्यूल से अलग हो जाता है, जिससे केवल कैप्सूल का हिस्सा धरती पर आता है, जिसमें चार अंतरिक्ष यात्री होंगे। कैप्सूल के अलग होने के बाद, इसके 8 ड्रेको थ्रस्टर्स का इस्तेमाल करके पीछे वाला फ्लैट हिस्सा धरती की ओर मोड़ दिया जाता है। यह फ्लैट हिस्सा हीट शिल्ड से लैस होता है, जो कैप्सूल को अत्यधिक तापमान से बचाता है और सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करता है।

वो 7 मिनट जब कंट्रोल नहीं होता

ड्रैगन कैप्सूल 28,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है। इस अत्यधिक रफ्तार के दौरान, कैप्सूल वायुमंडल से रगड़ खाता है, जिससे घर्षण (फ्रिक्शन) उत्पन्न होता है। यह घर्षण तापमान को 7,000 डिग्री फैरनहाइट तक बढ़ा देता है।

मिशन कंट्रोल का हाथ नहीं होता

यह 7 मिनट अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इस दौरान मिशन कंट्रोल टीम का कैप्सूल पर कोई नियंत्रण नहीं होता। इन मिनटों में, कैप्सूल के तापमान और दिशा को नियंत्रित करने के लिए पूरी प्रक्रिया स्वचालित होती है, और टीम सिर्फ स्थिति पर नजर बनाए रखती है।

फ्रिक्शन के कारण ड्रैगन कैप्सूल की रफ्तार धीमी होकर 600 किमी प्रति घंटे तक पहुंच जाती है। इस स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों पर धरती के गुरुत्वाकर्षण बल से चार से पांच गुना ज्यादा फोर्स लगता है। जैसे-जैसे रफ्तार कम होती है, तापमान भी घटने लगता है, जिससे कैप्सूल आग का गोला नहीं रहता। इसके बाद, कैप्सूल फिर से ऑनलाइन आ जाता है और मिशन कंट्रोल से उसका कनेक्शन बहाल हो जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, और लैंडिंग के लिए सभी सिस्टम तैयार होते हैं।

पैराशूट की अहम भूमिका

जैसे ही ड्रैगन कैप्सूल धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, शुरुआत में दो पैराशूट खुलते हैं, जो रफ्तार को कम करते हैं। इसके बाद चार पैराशूट खुल जाते हैं और कैप्सूल की रफ्तार 24 किमी प्रति घंटे तक आ जाती है। इस धीमी रफ्तार से कैप्सूल समुंदर में गिरता है।

कैप्सूल का बाहर निकाला जाना

पानी में गिरने के बाद, अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल के अंदर ही रहते हैं। एक ग्राउंड टीम जल्द ही वहां पहुंचकर कैप्सूल को समुंदर से बाहर निकालती है। इसके बाद, कैप्सूल खोला जाता है और अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला जाता है।

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