Jaishankar-Muttaqi talks: क्या पाकिस्तान से तालिबान की बढ़ रही हैं दूरियां?

Jaishankar-Muttaqi talks: क्या पाकिस्तान से तालिबान की बढ़ रही हैं दूरियां?

Jaishankar-Muttaqi talks: आतंकवाद की निंदा पर भारत की सराहना, तालिबान-पाकिस्तान रिश्तों में दरार के संकेत? यह पहली बार है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने बातचीत के बारे में सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया है।

Jaishankar-Muttaqi talks:भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने गुरुवार को अफ़ग़ानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी से फ़ोन पर बातचीत की। यह पहली बार है जब दोनों देशों के शीर्ष राजनयिकों के बीच हुई बातचीत को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया गया है, जो क्षेत्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।

इसे भी पढ़े – Bussiness Deal : “मैं नहीं चाहता कि आप भारत में iPhone बनाओ”: ट्रंप ने Apple CEO टिम कुक से ऐसा क्यों कहा? जानिए वजह

बातचीत के दौरान डॉ. जयशंकर ने दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया चरमपंथी हमले की निंदा करने के लिए मुत्ताकी का आभार जताया। यह निंदा ऐसे समय में आई है जब अफ़ग़ान तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों में तनातनी देखी जा रही है, खासकर सीमावर्ती इलाक़ों में लगातार हो रही झड़पों और आतंकवाद को लेकर बढ़ती तल्ख़ी के बीच।

भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। हालांकि, भारत काबुल में एक समावेशी और लोकतांत्रिक सरकार के गठन की लगातार वक़ालत करता रहा है। जयशंकर और मुत्ताकी की यह बातचीत संकेत देती है कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संवाद के नए दरवाज़े खुल सकते हैं, भले ही यह अनौपचारिक स्तर पर क्यों न हो।

राजनयिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संपर्क एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिससे भारत तालिबान पर सीमित प्रभाव कायम कर सके, खासकर जब तालिबान का पाकिस्तान के प्रति झुकाव पहले की तुलना में कमज़ोर होता दिख रहा है। आने वाले दिनों में इस बातचीत के राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभावों पर करीबी नज़र रखी जाएगी।

पाकिस्तान से बिगड़ते रिश्ते, भारत से बढ़ता संवाद: तालिबान की नई कूटनीतिक दिशा?

पिछले कुछ समय से तालिबान और पाकिस्तान के संबंधों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पाकिस्तान, जहां लाखों अफ़ग़ान शरणार्थियों को जबरन उनके देश लौटाने की नीति पर अमल कर रहा है, वहीं अफ़ग़ानिस्तान इस कदम का खुलकर विरोध करता आ रहा है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच डुरंड रेखा (सीमा) को लेकर विवाद भी बार-बार उभरता रहता है, जिससे तनाव और बढ़ता है।

इसी पृष्ठभूमि में यह सवाल उठने लगा है कि क्या भारत, बिना तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता दिए, अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपने रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है?

हाल के महीनों में भारत और तालिबान के बीच संवाद में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में अफ़ग़ान कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी से मुलाक़ात की थी। इसके बाद हाल ही में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और मुत्ताकी के बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई, जो अब तक का सबसे स्पष्ट राजनयिक संकेत माना जा रहा है।

भारत अभी भी तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता देने से परहेज़ कर रहा है और एक समावेशी सरकार की मांग पर कायम है। लेकिन बदले हुए क्षेत्रीय समीकरणों, खासकर पाकिस्तान-तालिबान संबंधों में आई खटास के मद्देनज़र, भारत अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपने संपर्क बढ़ाने के लिए एक ‘बैक चैनल’ रणनीति अपनाता दिख रहा है।

विश्लेषकों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता और आतंकवाद से लड़ाई में भारत की भागीदारी, वहां की मौजूदा सत्ता के साथ सीमित संवाद से ही संभव हो पाएगी — भले ही यह संवाद मान्यता से इतर ही क्यों न हो।

नवीनतम वीडियो समाचार अपडेट प्राप्त करने के लिए संस्कार न्यूज़ को अभी सब्सक्राइब करें

CATEGORIES
TAGS
Share This
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com