Iran and Israel War : ईरान और इजरायल कभी 30 साल तक घनिष्ठ मित्र थे आख़िर कैसे बने दुश्मन जानिए पूरी कहानी

Iran and Israel War : ईरान और इजरायल कभी 30 साल तक घनिष्ठ मित्र थे आख़िर कैसे बने दुश्मन जानिए पूरी कहानी

Iran and Israel War :1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद दोनों कट्टर दुश्मन बन गए। पहले, शहंशाह के शासन में ईरान इजरायल का सहयोगी था, लेकिन क्रांति के बाद आयतुल्लाह खुमैनी ने इजरायल के खिलाफ सख्त रुख अपनाया।

Iran and Israel War : मध्य पूर्व में ईरान और इजरायल के बीच लंबे समय से तनाव बना हुआ है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं था। कभी ये दोनों देश गहरे दोस्त हुआ करते थे। ईरान और इजरायल की 30 साल तक चली दोस्ती के बाद हालात बदल गए और ये अब कट्टर दुश्मन बन गए हैं। इस दुश्मनी की जड़ें गहरी हैं, और इसके पीछे कई भू-राजनीतिक, धार्मिक और क्षेत्रीय मुद्दे छिपे हुए हैं। आइए जानें कि कैसे 30 साल की दोस्ती कट्टर दुश्मनी में तब्दील हुई और इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी।

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हमास द्वारा इजरायल पर हुए हमले के एक साल पूरे होने को हैं। 7 अक्टबूर, 2023 को हमास ने इजरायल को वो घाव दिया , जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी । एक वक्त ऐसा था जब इजरायल की दी हुई मिसाइलों से ईरान इराक से युद्ध लड़ रहा था। आज इजरायल और ईरान एक-दूसरे को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बना बैठे हैं। एक दौर वो भी था जब दुनिया के तमाम मुस्लिम मुल्क इजरायल के खिलाफ खड़े थे। उसे मान्यता नहीं दे रहे थे। तब ईरान ने इजरायल का हाथ थामा था।

ईरान-इजरायल की दोस्ती

1950 के दशक से लेकर 1979 तक, ईरान और इजरायल के बीच मजबूत कूटनीतिक और आर्थिक संबंध थे। उस समय ईरान में शहंशाह मोहम्मद रजा पहलवी की सरकार थी, जो पश्चिमी देशों के प्रति झुकी हुई थी। इजरायल और ईरान दोनों ही सोवियत संघ के विस्तार को रोकने में रुचि रखते थे, और अमेरिका के सहयोगी भी थे। इस समय, इजरायल को ईरान से तेल मिलता था और ईरान इजरायल से सैन्य उपकरण खरीदता था। दोनों देशों ने सुरक्षा के मामलों में भी आपस में सहयोग किया था।

1979 का ईरानी क्रांति और संबंधों का टूटना

1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई, जिसने पूरे समीकरण को बदल दिया। आयतुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई, और ईरान ने पश्चिमी देशों और इजरायल के साथ अपने पुराने संबंधों को तोड़ दिया। खुमैनी ने इजरायल को एक “दुश्मन राष्ट्र” के रूप में देखा और फिलिस्तीन के समर्थन में खुलकर सामने आए। इस्लामिक क्रांति के बाद, ईरान ने इजरायल के खिलाफ अपने रुख को और अधिक कठोर बना दिया और उसके बाद से दोनों देशों के संबंध बिगड़ते चले गए।

गहराते दुश्मनी के कारण

ईरान-इजरायल के बीच दुश्मनी के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण ईरान का इस्लामिक सिद्धांत और उसकी नीतियों में बदलाव था। क्रांति के बाद, ईरान ने इजरायल को “इस्लाम का दुश्मन” और “फिलिस्तीनियों पर अत्याचार करने वाला देश” माना। इसके साथ ही, ईरान ने फिलिस्तीनियों की आजादी का समर्थन करना शुरू किया और इजरायल के खिलाफ हथियारबंद संगठनों जैसे हिज़्बुल्लाह और हमास को वित्तीय और सैन्य सहायता देना शुरू किया।

दूसरी ओर, इजरायल को ईरान के परमाणु कार्यक्रम से बड़ा खतरा महसूस हुआ। 2000 के दशक में ईरान ने जब अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया, तो इजरायल ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। इजरायल और पश्चिमी देशों का मानना है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित कर रहा है, जो पूरे मध्य पूर्व के लिए विनाशकारी हो सकता है। इस कारण से, इजरायल ने कई बार ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने की धमकी दी है।

वर्तमान स्थिति

आज की स्थिति में, ईरान और इजरायल एक अनौपचारिक युद्ध जैसी स्थिति में हैं। दोनों देश सीधे तौर पर युद्ध में नहीं उलझे हैं, लेकिन उनके बीच प्रॉक्सी वॉर चल रही है। सीरिया, लेबनान और गाजा पट्टी में दोनों देशों के समर्थित गुट आपस में भिड़ रहे हैं। ईरान इजरायल के खिलाफ हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे संगठनों का समर्थन करता है, जबकि इजरायल सीरिया में ईरानी ठिकानों पर हमले करता रहता है।

निष्कर्ष

ईरान और इजरायल की दुश्मनी क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, धार्मिक विचारधारा और भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है। कभी मजबूत सहयोगी रहे ये दोनों देश अब कट्टर दुश्मन बन गए हैं। इस दुश्मनी के चलते मध्य पूर्व में तनाव बना रहता है, और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए यह एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।

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