Fertility Rate : भारत में प्रजनन दर में लगातार नज़र आई गिरावट

Fertility Rate : भारत में प्रजनन दर में लगातार नज़र आई गिरावट

Fertility Rate : प्रजनन दर में गिरावट की वजह से देश में आर्थिक विकास बनाए रखना मुश्किल होगा भारत एक विकासशील देश है जहां एक बड़ी और युवा जनसंख्या श्रमशक्ति में योगदान करती है।

Fertility Rate : भारत में प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर 2.0 तक पहुंच गई है, जो 2.1 के रिप्लेसमेंट लेवल से भी नीचे है। यह बदलाव भारत के सामाजिक और आर्थिक ढांचे में गहरे बदलाव का संकेत है।

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घटती प्रजनन दर: प्रमुख कारण

शिक्षा और जागरूकता

महिलाओं की शिक्षा और उनके जीवन में जागरूकता के बढ़ते स्तर ने प्रजनन दर को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। अब महिलाएं परिवार बढ़ाने से पहले अपनी शिक्षा और करियर पर ध्यान दे रही हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास

बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और परिवार नियोजन के साधनों की आसान उपलब्धता ने भी प्रजनन दर घटाने में योगदान दिया है। गर्भ निरोधक के प्रति बढ़ती जागरूकता से अवांछित गर्भधारण में कमी आई है।

शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव

तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने परिवार के आकार को सीमित कर दिया है। महंगाई, रोजगार, और आधुनिक जीवनशैली की चुनौतियां लोगों को कम बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

महिलाओं की भागीदारी

महिलाओं की बढ़ती आर्थिक और सामाजिक भागीदारी के चलते उनके मातृत्व की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। अब महिलाएं शादी और बच्चों को लेकर अधिक सोच-विचार करती हैं।

अर्थशास्त्र के नजरिए से: सही या गलत?

सकारात्मक पहलू -संसाधनों पर दबाव कम

कम प्रजनन दर का मतलब है कि देश के प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों पर दबाव कम होगा। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे में निवेश अधिक प्रभावी हो सकता है।

महिलाओं के अधिकारों में सुधार

कम प्रजनन दर महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य और करियर के अवसर देती है। यह सामाजिक विकास के लिए सकारात्मक संकेत है।

आर्थिक संतुलन

कम जनसंख्या वृद्धि का मतलब है कि सरकार के पास प्रति व्यक्ति पर खर्च करने के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध होंगे। इससे जीवन स्तर में सुधार होगा।

चुनौतियां-बूढ़ी होती आबादी

प्रजनन दर में गिरावट से लंबे समय में बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी। इससे स्वास्थ्य सेवाओं और पेंशन सिस्टम पर भारी दबाव पड़ेगा।

कार्यबल की कमी

घटती जनसंख्या के कारण कार्यबल में कमी हो सकती है, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ सकती है।

आर्थिक असंतुलन

जनसंख्या का असमान वितरण आर्थिक और सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकता है, खासकर ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच।

आगे का रास्ता

घटती प्रजनन दर को पूरी तरह सही या गलत ठहराना मुश्किल है। यह विकास और चुनौतियों का मिश्रण है। भारत को इस बदलाव से निपटने के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

जनसंख्या संतुलन बनाए रखना: सरकार को परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य को संतुलित करने वाली नीतियों पर ध्यान देना चाहिए।

बुजुर्गों के लिए समर्थन: सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना होगा ताकि बूढ़ी होती आबादी की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

युवा कार्यबल का उपयोग: देश को अपनी युवा आबादी को कुशल बनाने और रोजगार देने पर ध्यान देना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था को लाभ हो।

निष्कर्ष

घटती प्रजनन दर विकासशील भारत के लिए नई संभावनाएं और चुनौतियां दोनों लेकर आई है। इसे सकारात्मक दिशा में मोड़ने के लिए नीतिगत सुधार और दीर्घकालिक योजनाएं जरूरी हैं। आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाना समय की मांग है।

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