IMF Bailout: भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान को राहत क्यों मिली?

IMF Bailout: भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान को राहत क्यों मिली?

IMF Bailout : पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को सात अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की एक अरब डॉलर की किश्त मंज़ूर की। यह निर्णय उस समय आया जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था और भारत ने इस फैसले का तीखा विरोध किया।

IMF Bailout : भारत ने IMF पर आरोप लगाया कि यह कदम पाकिस्तान द्वारा सीमापार आतंकवाद के समर्थन को नजरअंदाज करता है। बावजूद इसके, IMF ने कहा कि पाकिस्तान आर्थिक सुधारों के प्रति प्रतिबद्ध है और संस्था उसकी पर्यावरणीय व आपदा प्रबंधन कोशिशों का समर्थन जारी रखेगी। अगली किश्त जल्द मिलने की संभावना है।

इसे भी पढ़े – WhatsApp News : यूज़र्स को दी बड़ी सुविधा अब Status को कर सकेंगे Forward और Reshare

पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को सात अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की एक अरब डॉलर की दूसरी किश्त मंज़ूर की। भारत ने इस कदम का तीखा विरोध किया, खासकर 10 मई को हुए सीज़फ़ायर से पहले दोनों देशों के बीच बढ़ती सैन्य झड़पों के चलते। बावजूद इसके, IMF बोर्ड ने कहा कि पाकिस्तान आर्थिक सुधारों को लागू करने में गंभीर है। संस्था ने पर्यावरणीय जोखिमों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के प्रयासों का समर्थन करने की बात भी कही। संकेत मिले हैं कि भविष्य में 1.4 अरब डॉलर की अगली किश्त भी मिल सकती है।

आईएमएफ़ द्वारा पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज की किश्त मंज़ूर किए जाने पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भारत ने दो मुख्य आपत्तियाँ उठाईं—पहली, सुधारात्मक उपायों को लागू करने में पाकिस्तान के ‘ख़राब रिकॉर्ड’ पर सवाल; और दूसरी, इस फंड के ‘सीमापार आतंकवाद’ में इस्तेमाल की आशंका। पाकिस्तान इन आरोपों को लगातार खारिज करता रहा है। भारत ने कहा कि आईएमएफ़ अपनी और अपने डोनर्स की प्रतिष्ठा को खतरे में डाल रहा है। बीबीसी ने इस पर IMF से प्रतिक्रिया मांगी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। कुछ पाकिस्तानी विश्लेषकों ने भी भारत की पहली आपत्ति को तर्कसंगत बताया है।

पाकिस्तान को अब तक 1958 से 24 बार IMF बेलआउट मिल चुका है, लेकिन अर्थव्यवस्था या प्रशासन में ठोस सुधार नहीं दिखे। पूर्व पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक़्क़ानी ने BBC से कहा कि बार-बार IMF जाना ICU में भर्ती होने जैसा है—बार-बार की जरूरत ढांचागत समस्याओं की ओर इशारा करती है। भारत ने इस बार भी बेलआउट रोकने की कोशिश की, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रयास अधिक प्रचारात्मक था। सीमापार आतंकवाद को लेकर भारत की चिंता जटिल है, पर IMF की सीमित भूमिका और तकनीकी प्रक्रियाएं ऐसे फैसलों में निर्णायक होती हैं, भारत ने खुद माना।

IMF में भारत की सीमित भूमिका और बेलआउट फैसलों पर पश्चिमी देशों का दबदबा

भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के 25 सदस्यीय बोर्ड का हिस्सा है, लेकिन उसका प्रभाव सीमित है। भारत श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान समेत चार देशों के समूह का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व ईरान करता है। IMF में वोटिंग अधिकार देश के आर्थिक आकार और योगदान पर आधारित हैं—जहां अमेरिका के पास 16.49% और भारत के पास सिर्फ 2.6% वोट हैं। IMF में प्रस्तावों पर मतदान नहीं होता; फैसले आम सहमति से लिए जाते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रणाली में ताकतवर देशों के हित प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 2023 में G20 अध्यक्षता के दौरान भारत ने इस असंतुलन को सुधारने की सिफारिश की थी।

आईएमएफ़ में भारत की आपत्तियाँ क्यों बेअसर रहीं, और विशेषज्ञों ने एफ़एटीएफ़ को बताया सही मंच

आईएमएफ़ के नियमों में हालिया बदलावों ने संघर्षरत देशों को कर्ज देने की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। 2023 में यूक्रेन को 15.6 अरब डॉलर का कर्ज देकर IMF ने पहली बार किसी युद्धग्रस्त देश को फंडिंग दी। थिंक टैंक ORF के मिहिर शर्मा ने कहा कि यूक्रेन को कर्ज देने के लिए IMF ने अपने ही नियमों को शिथिल किया, जिससे पाकिस्तान के मामले में भारत की आपत्तियाँ कमजोर पड़ गईं। पूर्व पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक़्क़ानी ने सुझाव दिया कि भारत के लिए बेहतर मंच यूनाइटेड नेशंस की फ़ाइनांशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) है, जो आतंकवाद के वित्तपोषण पर निगरानी रखता है। FATF की ग्रे या ब्लैक लिस्टिंग से किसी देश की IMF और वर्ल्ड बैंक से फंडिंग पर असर पड़ता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि IMF में भारत की सीमित भूमिका के चलते उसकी आपत्तियाँ असरदार नहीं रहीं।

FATF से बाहर हुआ पाकिस्तान, IMF में सुधार की भारत की मांग चीन को दे सकती है बढ़त: विशेषज्ञ

पाकिस्तान अब FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर है, जिससे IMF फंडिंग में उसे राहत मिली है। विशेषज्ञ चेताते हैं कि IMF में फंडिंग प्रक्रिया और वीटो पावर में भारत द्वारा मांगे गए सुधार उलटे प्रभाव डाल सकते हैं। ORF के मिहिर शर्मा का कहना है कि ऐसे बदलावों से दिल्ली की बजाय बीजिंग को अधिक लाभ हो सकता है। हुसैन हक़्क़ानी भी सहमत हैं और कहते हैं कि भारत को द्विपक्षीय विवादों के लिए बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करने में सावधानी बरतनी चाहिए, जैसा कि चीन ने पहले भी ADB में किया है।

नवीनतम वीडियो समाचार अपडेट प्राप्त करने के लिए संस्कार न्यूज़ को अभी सब्सक्राइब करें

CATEGORIES
TAGS
Share This
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com