
सबाहत हसन शाह की सदारत में हुआ जलसा “ज़िक्र शोहदा-ए-करबला”
दरगाह दादा मियाँ (Dargah Dada Miyan) के सज्जादा नशीन हज़रत मोहम्मद सबाहत हसन शाह (Sabahat Hasan Shah) की सदारत में जलसा “ज़िक्र शोहदा-ए-करबला” हुआ
लखनऊ। 5 मोहर्रमुल हराम 1445 हिजरी दरगाहे अक़दस हज़रत ख्वाजा मोहम्मद नबी रज़ा शाह अलमारूफ दादा मियाँ (Dargah Dada Miyan) र0अ0 खानक़ाह शाहे रज़ा में हज़रत मोहम्मद सबाहत हसन शाह (Sabahat Hasan Shah) की सदारत में ज़िक्र शोहदा-ए-करबला “Zikre Shohada-e-Karbala” का आगाज़ रामपुर, मिलक के अब्दुल अज़ीज साहब ने तिलावते कलामे पाक से किया।
“Zikre Shohada-e-Karbala” जलसे को खिताब करते हुए हज़रत हाफिज़ व मौलना अब्दुल अज़ीज साहब ने अपने खिताब में कहा कि, जो दहकती आग के सोलों पे सोया वो हुसैन, जिसने अपने खून से आलम को धोया वो हुसैन, जो जवाँ बेटे की मय्यत पर न रोया वो हुसैन, जिसने अपना सब कुछ खो के फिर भी कुछ न खोया वो हुसैन।

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नबी-ए-करीम स0अ0व0 ने फरमाया हुसैन मुझसे है मैं हुसैन से हूँ और फिर फरमाया जो हुसैन से मोहब्बत रखता है अल्लाह उससे मोहब्बत रखता हैं, हुसैन वो है जो आबिद थे और आबिद ऐसे कि इन्तिहाई मज़लूमी के आलम में भी आसूरा की सारी रात अपने खेमें में इबादते ईलाही में गुज़ारी, और ऐसे आबिद के अपने जिस्मे पाक पर सैंकड़ो ज़ख्म खाने के बाद भी करबला की तपती हुई रेत पर खन्ज़र के नीचे दो नफिल नमाज अदा कर गये।
यज़ीद बातिल और दीन का दुश्मन था – मौलाना अब्दुल अज़ीज़
यज़ीद बातिल था, दीन का दुश्मन और शरीयत का बागी था, और उसका निजामें हुकूमत गैर इस्लामी, गैर दीनी, और गैर शरई था। जिसके मुकाबले में इल्लल्लाह की बुनियाद क़ायम रखने के लिए इमामे हुसैन ने अपनी जान ओ माल अजीज़ ओ अक़ारिब और यहाँ तक के अपनी औलाद तक की बाज़ी लगा दी।
“Zikre Shohada-e-Karbala” जलसे की सदारत दरगाह दादा मियाँ (Dargah Dada Miyan) के सज्जादा नशीन हज़रत मोहम्मद सबाहत हसन शाह (Sabahat Hasan Shah) ने की। जलसे में दूर दराज से आये तमाम जायेरीनो और अकीदत मन्दों ने काफी तादाद में शिरकत की। जलसे का इख्तिताम सलातो सलाम व दुआ पर हुआ।