7 मोहर्रमुल हराम – जिक्र शोहदा-ए-करबला (Zikr Shohada-e-Karbala)

7 मोहर्रमुल हराम – जिक्र शोहदा-ए-करबला (Zikr Shohada-e-Karbala)

जिक्र शोहदा-ए-करबला (Zikr Shohada-e-Karbala) – अगर इमाम अली मकाम ने इतनी बे नज़ीर कुर्बानी न दी होती तो बातिल का बढ़ता हुआ अन्धेरा इस्लाम के सही उसूलों को अपने दामन में छिपा लेता

लखनऊ। आज 7 मोहर्रमुल हराम 1445 हि0 दरगाह हज़रत ख़्वाजा मोहम्मद नबी रज़ा शाह अलमारूफ दादा मियाँ र0अ0 ख़ानक़ाह शाहे रज़ा (Dargah Dada Miyan) में जिक्र शोहदा-ए-करबला (Zikr Shohada-e-Karbala) का आग़ाज मस्जिद शाहे रज़ा के पेशे इमाम हाफिज अनवार साहब ने तिलावते कलामे पाक से किया।

जलसे को खिताब करते हुए कारी किस्ससुल वारिस साहब मदरसा मुशाहिदुल उलूम शेरवानी नगर,लखनऊ ने अपने खिताब में कहा कि, नक्श तौहीद का हर दिल पे बिठाया हमने ज़ेरे खन्जर भी ये पैगाम सुनाया हमने। मालूम हुआ कि जानशीने रसूल फरज़न्दे बतूल अपने हर अमल से इस्लाम की हक्कानीयत का एैलान फरमा रहें थे।

ये भी पढ़े : मणिपुर में राष्ट्रपति शासन तुरंत लागू होना चाहिए – ZCSC

और नाना जान की शरीयत को दागदार होने से बचा रहे थे। अगर इमाम अली मकाम ने इतनी बे नज़ीर कुर्बानी न दी होती तो बातिल का बढ़ता हुआ अन्धेरा इस्लाम के सही उसूलों को अपने दामन में छिपा लेता।

फौजों की ताकत उसूल को शिकस्त नहीं दे सकती – जिक्र शोहदा-ए-करबला

जिक्र शोहदा-ए-करबला Zikr Shohada-e-Karbala

बानी ए इस्लाम का नवासा हुसैन रजि0 ने अपने किरदार की बुनियाद से बता दिया, कि फौजों की ताकत उसूल को शिकस्त नहीं दे सकती असलहे की कसरत सदाक़त का सर नीचा नहीं कर सकती, इसलिए कि सच्चाई खुद एक ताकत है।

नेजो़ की बौछार खुदा की इबादत से नहीं रोक सकती, फतह हक़ की होती है बातिल की नहीं, फतह कसरत से नहीं फज़्ले इलाही की बुनियाद पर होती है। इसलिए हज़रत इमामे हुसैन रजि0 ने जुल्मे यज़ीद के खिलाफ इल्मे बगावत बुलन्द किया। और इस्लाम को रूसवाई से बचा लिया।

Zikr Shohada-e-Karbala जलसे की सदारत (Dargah Dada Miyan) दरगाह दादा मियाँ के सज्जादा नशीन हज़रत सबाहत हसन शाह ने की। जलसे में मकामी व गैर मकामी लोगों ने कसीर तादात में शिरकत की। जलसे का इख्तिेताम सलातो सलाम व दुआ पर हुआ।

नवीनतम वीडियो समाचार अपडेट प्राप्त करने के लिए संस्कार न्यूज़ को अभी सब्सक्राइब करें

CATEGORIES
TAGS
Share This